आपातकाल में गुप्त क्रांति | Aapaatkaal Mein Gupta Kranti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नेतृत्व भूमिगत आन्दोलन का असली नेतृत्व कौन कर रहा था, इसे समझने के लिए थोड़ा विस्तार मे जाना आवश्यक है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण आपातकालीन स्थिति लागू होते ही बन्दी बना लिए गए थे | जब छठे तो भी' उनपर कड़ी निगरानी बनी रही। उनकी गतिविधियों और मिलने-जलने पर पाबन्दी थी। सिफ उनसे मिलने के अपराध में भी कई लोग गिरफ्तार किए गए । इसलिए यह कहना कि भूमिगत आन्दोलन का नेतृत्व वे कर रहे थे, सम्भव प्रतीत नहीं होता । लेकिन यह तभी तक असम्भव प्रतीत हो सकता है, जब तक हमारी दृष्टि स्थूल नेतृत्व पर अटक कर रह जाती है। थोड़ी गहराई में जाएं तो जयप्रकाशजी भूमिगत आन्दोलन के प्राण के रूप में नज़र आते हैं। जयप्रकाशजी की स्थूल काया भले ही चण्डीगढ़ के कैदखाने या जसलोक अस्पताल अथवा कदमकुआं के निवास-स्थान पर कहीं भी रही हो, लेकिन अपनी प्रेरणा के रूप मे पूरे भूमिगत आन्दोलन में वे सब जगह स्थित थे । शायद ही कोई महीना गया हो, जब लोकनायक ने भूमिगत आन्दोलन के नाम प्रेरणास्पद सन्देश जारी न किया हो । १६ महीनों के दौरान उन्होंने हर महत्त्वपूर्ण मौके पर भूमिगत कार्यकर्ताओं को ऐक्शन प्रोग्राम” दिया। इनमें से कुछ दस्तावेज इस पुस्तक में प्रकाशित किए जा रहे है। भूमिगत कार्यकर्ताओं ने इन ऐक्शन प्रोग्रामों' का अक्षरश: पालन किया । जितना भी भूमिगत साहित्य प्रकाशित हुआ, उसमें से किसीके कुछ अंक ही होंगे, जिनमें लोकनायक जयप्रकाश नारायण के बारे में कुछ न कुछ न छपा हो । भूमिगत आन्दोलन के सारे साहित्य की वे धुरी थे। फिर सभी पक्षों के जो कुछ नेता बराएनाम बन्दी नहीं बनाए गए थे--वे उनसे बराबर मुलाकात करते रहते थे । इतना ही नहीं, बीसियों से मौके आए जब शीषंस्थ भूमिगत नेता जयप्रकाशजी से मिलने में कामयाब आपातकाल में गुप्त क्रांति / १६




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