विश्व रथ | Vishw Rath
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
329
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३७ लोपासुद्रा
सुल्लाया द्वाय तो किसीकों देखभाल करने की ए.रूरत ही नहीं বা दोनों -
मिलकर खूब खेलते रहं । एक को मारने पर दूसरा रोने लगे केहक
हँसता तो दूसरा बिना ऋारण के ही किल्वक-किलक ह'सता | धोका ओर
सम्यवती, दोनों बालकों को देखकर खश के मारे फूली न समातीं ।
दोनों बालक बड़े हुए । विश्वरथ ह'सता, बोलता और मनचाही
चौज भांग लेता ! जमदग्नि चुप बेठा रहता और লালা কটি सित्रा और
किसीसे बहुत न बोलता । मामा दोनों के लिए खाने को ले आता, अकेले
कभी न खाता । भानजा सब कुछ संभालकर रख लेता और न्मामा के
साथ उकर खाता। किसी दासी के साथ झगड़ा होने पर मामा
चिल्खाने लगता, पर भानजा तुरन्त उठकर चुपचाप घृ'साबाजी करने
लग जाता। दोनों या तो भरतग्राम सें रहते या रूगुओं के गांव सें
चले जाते; ओर यह दोनों के माता-पिता को बहुत खटकता। क्
दोनों बच्चे जब छ:-सात वर्ष के इए तो माता पिता के सामने
एक कठिनाई आकर खड्ी हुई। भरतश्रेष्ठ को राजा बनना था और
यु श्र प्ठ को ऋषि । दोनों का क्रम अलहदा, शिक्षा-दीक्षा निरक्ती और
दोनों का कार्यक्षेत्र भी सिन्न-मिन्न । पर क्या किया जाय ? एक के
बिना दूसरा सीखता ही नथा । अन्त में दोनों लड़कों ने आप-ही-आप
पक नया रास्ता खोज निकाला । दोनों ने दोनों तरह की बात सीखनी
झुरू कर दीं। दोनों के माता-पिता को न ह'सना सूकता और न रोना ।
ऋचीक ने सिर हिल्लाया । वरुणदेव को एक ही पुत्र देशा था, वह
आधा-आधा मां बेदी को बांट दिया। वृद्ध गाधि इषं के सारे फूला न
समाया । सोचा--बहुत खूब । एक के बदले मुभे दो पुत्र मिक्त मामा
और मानजा--दोनों को किसी दिन आपस में अब तक किसी लड़ते
ऋगढ़ते नहीं देखा। लेकिन एक दिन दोनों लड़ ही पड़े ।
उस समय वे दोनों सात बरस के थे और सत्यवती के साथ श्चुगुप्राम 2
में रहते थे | ऋचीक हर दूसरे-तीसरे महीने दजार-दो हजार घुड़-
सवार लेकर सुसाफिरी करने जाया करते थे । इस समय भी वह बाहर
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