पचास कहानियां | Pachas Kahaniyan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
39 MB
कुल पष्ठ :
299
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विनोदशंकर व्यास - Vinod Shankar Vyas
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्र हृदय की कसक
वती सममू गी। अगर मेरा सौभाग्य अन्घे समाज को खलेगा,
तो देखने देना।
मैंने कहा--नहीं शान्ता, इस तरह समाज की अवहेलना
करना ठीक नहीं। इमे इसी समाज मे रहना ओर मरना है ।
नवार दिन की इस जिन्दगी मे समाज से अपयश ठेकर जीना-
मरना अच्छा नहीं |
उसने मेरी बातों का कोई उत्तर नहों दिया। मैंने फिर कहा---
यह तो बताओ, तुम मेरी आत्मा को प्यार करती हो या क्षणः
अङ्कुर शरीर को ?
आपकी आत्मा को |
तो देखो--यह शरीर ओर रूप एक दिन मिट्टी में मिल
जायगा; किन्तु मेरी आत्मा सदा तुम्हारे साथ रहेगी । मेरा
शरीर चाहे कहीं भी रहे, लेकिन तुम्हें मेरे वियोग का दुःख नहों
उठाना पड़ेगा ।
मेरी बात सुनकर उसके हृदय पर बढ़ा आघात पहुँचा । उसने
कहा--देख ली मैंने आपकी फिलासफी ! अच्छा, आप जाते ही
है, तो जाइये; पर अपनी इस दासी को मुखा मत दीजियेगा ।
यह कहते-कते उसका समुह पीला पड़ गया । बगर से उसमे
एक सुगन्धित रेशमी रूमाठ निकालकर कहा--लीजिये, यह है
मेरी याददाइत !
मैंने रूमाल छेकर उसकी खुशबू से तबोयत को तर किया--
फिर उसे आँखों से छगाते हुए जेब में रख लिया। मैंने अपने
टक सेदो किताबें निकालीं और उसे देते हुए कहा--छो, ये ही
तुम्हें मरी याद दिलायेंगी ।
उसी दिन, रात की ट्रेन से, सबसे बिदा होकर, मैं घर की
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