कालिदासकोशः | Thesaurus Of Kalidasa Vol-2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पदकोसः खिकेद हजरत / बघ्ाधाचाटता उंलाणायाउओ उउऊा 1346 बस्तुनि उ० 51.4.22.38 वस्तुनडि संज्ञा सप्तमी एकवचन प्रयोजनादिविषये प्रदीप विषये संजी० अर्थ पंचिका पदार्थ सुबोधा 1 कालिदास की कृतियों में प्रस्तुत पद का प्रयोग दो बार हुआ हैं। मेघदूत के अतिरिक्त इसका प्रयोग शाकु० में एक बार 106.4 हुआ है। 1347 वहत्ति द्विवारं प्रयुक्‍्तमु पू० 66.3.17.28 उ० 12.2.10.15 वहुनलटु प्रथम पुरुष एकवचन तिडन्त दधाति चरित्र 12 विभर्त्ति संजी० 66 विभर्त्ति संजी० 12 आदत्ते स्वव्यापारान्‌ कुरुते इत्यर्थ पंचिका 12 धारयति सुबोधा 66 धारयति सुबोधा 12 कालिदास की कुतियों में प्रस्तुत पद का प्रयोग छह बार हुआ है। मेघदूत के अतिरिक्त इसका प्रयोग शाकु० में दो बार 1.1 7०6 रघु० 13.61 तथा ऋतु० 3.21 में एक एक बार हुआ है। 1348 वा एकादशबवारं प्रयुक्तमु पू० 57.4.14.55 उ० 24.1.7.20 24.2.10.30 24.3.14.36 22.4.23.39 25.1.2.4 26.1.14.14 26.3.8.23 48.3.22.30 54.2.7.21 54.2.10.24 अव्यय वा शब्द इवार्थ चरित्र 22 इव इव वदू वा यथा शब्दौ इति दण्डी संजी० 22 वा शब्दों विकल्पे उपमायां विकल्पे वा इत्यमर संजी० 24 वा शब्द इवार्थ पंचिका 24 वा शब्दोर्ड्थान्तरयासद्योतने सुवोधा 57 वा शब्द इवार्थ वा विकल्पोपमानयोरिति रन्ति सुबोधा वा शब्दो5स्ति सुबोधा वा शब्दों द्वाभ्यां सम्बन्धनीय बलिव्याकुला मत्सादृश्य सुवोधा वा शब्द एवार्थ सुबोधा 25 यह इव के अर्थ में आया है- उपमायां विकल्पे वा इत्यमरः । प्रकरण मे वा आवश्यक है अन्यथा क्रमभड्भ हो जाता है तथा उसका अध्याहार करना पड़ता है। मल्लि० ने वा का कोई अर्थ नहीं किया है। वा के बहुत से अर्थ होते हैं। यहाँ इसका निश्चय से अर्थ है। देखिये-अमरकोश-स्युरेवं तु पुनर्वेवेत्यवधारणवाचका । का० पा० ने के वा के स्थान में केषाम्‌ पाठ दिया है परन्तु इस पाठ में अर्थ में कोई भेद नहीं आता। यहाँ वा का अर्थ इव समान नाई है। वा अव्यय शब्द है जो निम्न अर्थों में प्रयुक्त होता है- 1 समुच्चय और अन्य 2 उपमा समान 3 विकल्प या अथवा | कालिदास की कृतियों में प्रस्तुत पद का प्रयोग पचहत्तर बार हुआ हैं। मेघदूत के अतिरिक्त इसका प्रयोग शेष ग्रन्थों में इस प्रकार है-रघु० 17 विक्रम० 17 शाकु० 11 मालबि० 10 कुमार० 9 । विस्तृत विवरण के लिए द्रष्टव्य सम्पादक की कृति कालिदास पदकोशः । 1349 वाचालमू उ० 33.3.13.25 वाचाल+अमू विशेषण द्वितीया एकवचन यत्किंचन वादिनम्‌ चरित्र० बहुभाषिणम्‌ स्याज्जल्पकस्तु वाचालो वाचाटों बहुगर्हावाक इत्यमर आलजाटचौबहुभाषिणी इति आलचू प्रत्यय संजी० यत्किज्चनभाषिणम्‌ पंचिका वाचू+आलचू। व्यर्थ की अनर्गल वातें करने वाला। तुलना करो-स्याज्जल्पकस्तु वाचालो वाचाटो बहुगहवाक्‌ अमरकोष। वाचू के आगे आलचू और आटचू प्रत्यय इसी अर्थ में आते हैं। इसके विपरीत्त विवेकपूर्ण बातें करने वाले को वाग्मिन्‌ कहते हैं । बहुभाषी के अर्थ में वाचू से आलचू और आटच्‌ प्रत्यय लगते हैं। पाणिनि का सूत्र है आलजाटचो बहुभाषिणि 5.2.125 । वार्तिक से यह स्पष्ट हो जाती है कि आलचू या आटच्‌ कुत्सित बहुभाषण के अर्थ में लगते हैं- कुत्सित्त इति वक्‍्तव्यम्‌। आशय यह कि वाचाल उसे कहते हैं जो बेहूदे ढंग से बहुत वोला करता है। अमरकोश का कथन है- स्याज्जल्पकस्तु वाचालो वाचाटो बहुगरहवाक। एक बात ध्यान देने की है कि कालिदास ने यह प्रयोग पाणिनि के सूत्नानुसार किया है न कि वार्तिक के अनुसार। यहाँ पर कोई भी कुत्सित बात यक्ष ने न तो अपनी प्रियतमा के सम्बन्ध में कहीं और न मेघ के और न ही अपने ही संबंध में। अतः वाचाल का तात्पर्य यहाँ बहुभाषी मात्र से है। अमरकोश का भी काल कालिंदास के




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