आध्यात्मिक सोपान | Aadhyatmik Sopan

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Book Image : आध्यात्मिक सोपान  - Aadhyatmik Sopan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आध्यासिक सोपान । [७ . मानता दै. वह दरए% पदाथ तेरेसे भिन्न दे | तू विचार कर ! जमतमे नितने सत्तात्मक द्रव्य हैं वे अपने स्वरूपसे आप रू हें, परन्तु परखरूप नहीं दैं, उनमें स्ववस्तुपनेकी सत्ता है ओर पर- वत्तुपनेकी अप्तत्ता है भर्थात्‌ से ही प्त पदार्थ मित्र रूप दें। कोई भी अपनो प्त्ताको खो नहीं प्तक्ता। वस्ठु एक दुस्तरेमें निमित्त सहायक होप्तक्ती है, परन्तु कभी वदक कर अन्य वस्तु रूप नहीं होप्तक्ती है | मोदी प्राणी निप्त शरीरसे मोह करता है वद शरीरं ुदध परमाणुरजो शना समू है-उनदीसे मिकूर बना दे, उनहींके विछुइनेसे विछुड़ जायगा । माता, पिता, भाई, बन्धु, खी, पुत्र, घन, गृह, ग्राम, नगर, देश निनको यह प्राणी अपना कता दै वे सब इसकी अत्ताकी प्रत्तासे मिन्‍न हैं | न कोई किप्तीके प्ताथ जन्मता ह, न फोर किप्तीके साथ मरता दे | यदि कोई साथ जन्मता भी दे तो मिन्‍न२ गतिसे जाता दे। यदि कोई साथ मरता भी है तो कर्मानुपतार मिन्नर यतिको माता दे | जगतके इन संब- धोंको अपना मानना मात्र मोह है, जिप्तसे वियोग होनेपर महान कष्ट द्वोता दे | ज्ञानी नीव तो इस स्थल शरीर व उस्तके सम्बेधोंके सिवाय अपने साथ संप्तार अवस्था आए हुए वैनप् जीरं कामग शरीरको भी अपनेसे मिन्‍व जानते हैं, क्योंकि ये भी स्थूछ शरी- रके समान तेनप्त और का्मीण वर्गेणाओंसे ऋमसे बनते ओर बिग- ভু रहते हैं | इन कर्मोके उद्यसे शो आत्मामें रागादि औपाधिक भाव होते हैं उनको भी ज्ञानी नीव अपनेसे भिन्‍न जानता है, . क्योंकि वे भी कर्मोप्राधि सापेक्ष दें | कर्मे रहित नीवोंमें नहीं पाए जाते हैं | यथपि भक्तनव. जरहंत, सिद, भाचाये, उपाध्याय, জান




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