माणिक विलास | Manik Vilaas

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Manik Vilaas by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १९) १९ पद्-राग कोटी ॥ जाह. समय मिरी भन्यन को महामोह चिर पमो करम सीं ॥ रेक ॥ मेद्‌ःज्ञान रवि प्रगट भयो सुगयो मिथ्या. तम हृदय सदन सी ॥ जाही० ॥ १॥ सज टस निज परज्‌ भिन्न ये परिचय करे शह अनुभवसो । ज्ञान विरागी शुभसति जागी चेतनता न कह पदगल सों ॥ जाहो० ॥९॥ यो प्रवीन कर- तूति करत नित धरत जुदाई सदा जगत सीं । मानिक ठस प्रगरे पाघक ऽयो भिन्न करत है कनक उपलसों ॥जाही० ॥६॥ २७ पद्‌-राग पद्‌ ॥ ` तत्लांरथं सरधानी ज्ञानी इमि सरधान घरत सक नाहीं ॥टेका सुख दुख कर्माश्नित आनत मानत निज में न करम परछांहों।मैं चित पिंड अखंड ज्ञान घन ` जम्म मरण २




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