भक्तामर स्तोत्र | Bhaktamar Stotra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
954 KB
कुल पष्ठ :
54
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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है, उसके बोलनेमें मुख्य कारण बौर ही दै! उसी
प्रकार आपकी स्तुति करनेमें आपकी स्तुति ही प्रधान
कारण है ।
त्वत्संस्तवेन भव सन्तति सन्निबद्ध,
पाप क्षणात्क्षयसुपति शरीरभाजाम् ।
आकान्तलो कमलिनीलमशेषमाशु ,
सूर्यांशुभिन्न्नमिव कशावेरमन्धकारम् ॥७]
तुम जस जपत जन चिन माहि,
जनम जनमके पाप नसाहिं।
ज्यो रचि उग फटे ततकाल,
अलिवत नील निशातम जाल ॥ ७ ॥
शब्दाथे--हे भगवन् ! आपके स्तवनसे जीवधारियोके संचित
जन्म जन्मके पाप क्षणमें विनाशको प्राप्त हो जाते
हैं, जिस प्रकार सू्थके उदय होनेपर उसकी किरणोंसे
सम्पूर्ण छोकको ढके हुए भोरेके समान प्रगाढ़ रात्रिका
कारा अन्धकार शीघ्रतासे नष्ट हो जाता है ।
भावार्थ--जिस प्रकार सूर्यके उदय होनेपर अन्धकार नष्ट हो
जाता है उसी प्रकार आपकी स्तुति करनेसे जीवॉक
पाप नष्ट हो जाते हैं १६॥
मत्वेति नाथ तव सस्तवन मयेद-
मारभ्यते तनुधषियाऽ{प तव प्रभावात् ।
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