नयनसुख विलास | Nayansukh Vilas (vol. - Ii)
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
208
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री नयनसुख्॒ विलास । { १६
:३०१९३ सज ओ =”
धावा-त्यागूगा जगतमें _चसूगा बन खण्डमें । अठ मैं
तो करू गा तपस्या खुखकार ॥श॥ पाय पयादा विचरूगा
वन खण्डमें। अह में तो करूगा वनों हीमें अहार ॥३॥
पालूंगा संजम करूंगा रक्षा जीवकी | झरु भाई जन्म नहीं है
बारम्वार ।४॥ अब भीरामकू सोपूगा सारी संपदा। अछ
उसके छिरपे छत रखूगा घार ॥५॥
गहीपे बिठाके में जञाऊआ तप करनकू । আচ বাঁ লা दूँगा
ए पटक्षि हथियार ॥६॥ पढछड़ा दूँगा तीनों वेटोंडी मुजा
उसे | अरु थो तो रामके रहेंगे तावेदार 1७॥ च्यान्षी
माताकों उसीके सरनें छोड़के, अरु में तो जाऊंगा কলা
तप खार ॥८॥ जल्दी सुधवायौजी छगन मेरे मन्द्रया घ्र
कर्य सारे ही खवर इकबार ॥९॥ मिजया थो खिदो सें
राजा सब देरके, भरु आर्ये पप्य हमारे ह्िततकार ॥५८
आं खव राज्ञा सुर्जवंशी चन्द्र वंह, अरु बावं स्वार
ज्ञादू बंशी सरदार ॥११॥ जल्दी करवाद्यों थीत प्यारी मनों-
द्वारकी, अझ करवा दो नगरीमें मंगल चार ॥१४॥। हमे
होते ही बलन लगी टेंदुभी, अरू लगे रामके होन जः
जेकार ॥१३॥ दान सन्मान अठ पूजा भावना, अझ सजि राए
नृप मंदिर तृज्ञार ॥१७॥ घरघर गाषे साई भेना जश रामके,
অভ भाई सज्षि गई घोटूफी फतार ॥६०॥
सन्नि गए राज्ञाजोके गशरति ঘৃলন; সহ লি গত সী
फोजू के सरदार ॥१६॥ दुरित सुष्ठित जीरः शरदे समग्वदार,
अष चन्दे दानः न्यर् परकार् 11१८ छोड दिय रश
बनन््दीखाने सप तोड़गे, झस कर दिये हैं. छर्मेश्नी गुनएगार
॥९८। हाथोंसे महंदी मुख কীনা পীহানহযা অহ हगे सीताईं-
होनेकू मंगल धार ॥१९॥ মলি হাথ ए তা सनत আহ
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