श्री ज्ञातसूत्रम | Sri Gyatasootram

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Sri Gyatasootram  by श्रेणिक न्याय - Srenik Nyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थ्रा जाता/खन्नम की बात है? आप असन्न हों, चिन्ता त्या) माताजी की कामना पृण करूंगा ।' महाराज का बोक कम हुआ | उन्हें अपने पुत्र की चमत्कारिणी बुद्धि का पूरा भरोसा था । पुत्र को भेमपूर्स क विदा क्षिया । इधर कुमार ने सोचा--पानी बरपा देना कोई कठिन कार्य नहीं ६ । वायु के अप्ठक प्रद्वार के सम्पश्षण से यह कार्य सहज ही सम्पन्न किया जा सकता ३ । किन्तु अप्तमय वर्षाकालीन अन्यान्य दृश्य दिखला देना अ- बश्य कठिन है । यह मानव-शक्कि से परे है । अतएव दिव्य शक्ति की सहायता लेने की आवश्यकता 6 | विचार करने के पश्चात्‌ उसे स्मरण आया--' मेरा एक परम प्रिय मित्र मर कर खर्गलेक में महा ऋद्धिधारी देव हुआ हैं। वह मेरी माता की अभिलापा पूरी कर सकता है !' यह विचार कर वह अयनी पोयधशाला में गया ओर पौपधवत धारण कर द्द आसन से उस देव की आराधना करने लगा | तीन दिन के पश्चात्‌ उसकी साथवा सफल हुई । उसके भित्रदेव के शरीर में एक प्रकार का स्फूरण हुआ । देव ने अवधि- ज्ञान के बल से अभयऊुमार को साधना के। जाना । अव- : घिन्नान से बिना इन्द्रियों और मन की सहायता के दूर की रूपी वस्तु जानी जा सकती है । यस्तु । देव अपने पुख्ड- [ १५ 1




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