विश्व-प्रहेलिका | Vishwa-Prahelika

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Vishwa-Prahelika by गोविन्दचन्द्र पाण्डेय - Govindchandra Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्पादकीय हर वतंमान श्रतीतके गतंमे समाता चलता है श्र उस पर समय की परत छाती चली जाती है। जो वतमान श्रपने समयमे लाखो मनुष्यों के मुह पर नाचता है, वही एक दिन श्रनुसन्धेय बन जाता है। विद्वान्‌ विगतभूत वर्तमान को पकडने के लिए प्रयत्न करते हैं श्रौर उस समय का वर्तमान फिर प्रतीत के अचल में सिमिट जाता है। यह क्रम चलता ही रहता है। इसी प्रयत्न मे वतंमान को भी परतो मे न दबने से बचाया नही जाता । इतिहास अपनी सफलता इसी मे श्राकता है। दर्शन, घमं, सस्कृति, सम्यता श्रादि सभी के प्रतीत को कुरेदा जाता दै श्रौर वहाँसे जो भी यत्‌ किचित्‌ प्राप्त होता है, उसे वर्तमान में सभाया जाता है । कुछ विद्वान केवल ऊपरी सतहो तक रह जाते हैं भौर कुछ श्रन्तर की सुक्ष्मताश्नो के भेदन मे सफल होते है । वे श्रतीत को भी एक बार वर्तमान के सामने लाकर खडा कर देते हैं। उन्हे अपने कायं पर प्रसन्नता होती है श्लौर समाज को उस पर गौरव, क्योकि विलुप्त प्रायः तथ्य उस समय नया परिघान लेकर प्रकट होते हैं। मुनि महेन्द्र कुमार जी द्वितीयः की प्रस्तुत कृति विष्व प्रहेलिका इसी कोटि की रचना दै । इस कृति मे जेन परस्परा के लोक-सम्बन्धी बहुत सारे तथ्य, जो कि समय की श्रनगिन परतो के नीचे दब चुके थे भ्रौर जिन्हे विद्वद्‌वर्ग मी भूल-सा गया था, पुनि महेन्द्र कूमारजी द्वितीय ने जेन श्रागमो कै प्रालोकमे उन्हे परखादै, तथा विज्ञान की भ्रनेक सरणियो के साथ ভল্ই सजोक्रर सरल भाषा तथा श्रनुकृतियो के साय प्रस्तुत किया है । जेन-परम्परा मे. चरणकरणानुयोग, द्रन्यानुयोग धर्मकथानुयोग के साथ ही साथ गरितानुयोग का भी महत्वपूर्णा स्थान रहा है, किन्तु मध्यवर्ती युग भे द्रव्यानुयोग का अनुशीलन श्रल्प होता गया और गरितानुयोग का श्रनुशीलन तो अतोव श्रल्प हो गया। गरितानुयोग-सम्बन्धी जो रहस्य श्राचार्यों ने उल्लिखित किये हैं, उन्हे हृदयगम किया जाना भी श्रत्यन्त कठिन हो गया। कुछ परम्पराएंँ लुप्तप्रायः हो चुकी हैं। उनके अभाव मे बहुत सारे पूर्व उल्लिखित জ্ৰলী के बारे मे कुछ एक विद्वानों ने यह भी লি दे दिया है कि प्राचीन संगत नही हैं। यथा्थंता यह है कि वहाँ




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