गो-ज्ञान-कोश | Go-Gyan-Kosh

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Go-Gyan-Kosh  by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मोगिधफा स्वरूप पंशना|शलाभाप्वाधालइशअः प्रावर्तित' । ल हष्टबा अब्याथिता यूतवणा | लेप बोपयोगा वेपह्ासाबा भा गोरपा रोण्यादसात्य्यादरा 50505100555 হাহ पूर्वशत्पक्ष) पृषप्ञयश्न ॥ (৭৮ গনিত অন ৭) ७५ भादिकाण्मे सथघुचं प्रा जानि परक्रुत्ोकों यज्ञॉगम सुशोभित रिया जाता वा, इग # वध गही दोता था | पश्चात्‌ बक्षमज्ञके गंतर सरिष्यन, तासाक, दृष्षयाऊ तथा विड. चर्यं भादि यनुक पुत्रे चने प्रुत प्रोक्षण होगे लगा। हसके बाबू पहुत समय च्यगीसं तापपर एज प्ुधअने जबर दीष सत्रे शुरू पया गोर्‌ जन्‍म पश्ञ न गिलने जगो तने शत्य पञ्चमो अमष गोतो शालश्मत शुरू फिया मोजो यह दशा रवर सथ স্যাগিমান্ন দি থা আও हुआ गौभोका सापि भारो, उष्ण খাত भरवाभात्रिफ दहोनेके कारण उस লা लोगोडी जगि ओर द्धि शिः भी मन्द्‌ दो ग भौर গাজী কান होनेके ज़रण इसी पपश्नके पशते ग्रोषधसे भतिरार रोग्र उप्न्न हुआ । पाठक इस चरफाचार्यके कथमफा खूब भसस कर । দ্যা से यज्ञकी तीस अ्ब+वाएु बसाह है-- ( १ ) पदिले समय यजेय पदुवध सही होता গা, प्सुत गो नादि पशुलोक गज्ोंगे शुद्योित कर सत्कार से रखा जाता था, (२) दृखरे मयः अर्थात्‌ उसके वादक समयर्श সনু के पुम्नोंने पशुकोको बन्नसे भोक्षण करनेफी रीति चलाई, (8 ) फश्चाद्‌ तीधरे सड़ायर्म एगधोते सबसे प्रथम यम ग्र गोका वध जिय), परंतु हसन सत्रे निर्भेध किया । जिगहोनै हस यहने गोगास खाया उम्को भअविदार्‌ सेम हभा, भोर त्ते अक्तिार दन रोगो को सतह शइ] हं | इससे यह णिद्र होता दै कि पति ्राचीषं मेदक ध में निर्मास सज होते थे, मध्य काछसे सर्मोश यज्ञ छुछ हुए परंतु इस काकसे थी गौ थारी ग जाती थी, पश्चात्‌ बहुत भाधुनिक হাজী यहर्मे गोयध हर किया परतु पृसके विरुद्ध सब जनता हुए भोर गोचर जद हुआ बच्चारी घविसार रोग शुरू हुआ | हमारी यह संज्ति है कि यज्तसें सोधंध ब्रहुत दिमतक खडा न दोना, पषश्रके ससय शुरू हुमा, (१२) छोगोंकी भी य४ पसंद ने हुआ भार रोग भी पीछा, हृस लिये फिए फ्िसीने यह कप्कर्म जिवा তরী ন দা । तात्पर्य प्रचीन दाश कनयम मे पशुधप হীন এ जोर बही गोलव ऐोता था। जिपने किया उससे 41 অহী সাং उसका पल भोगा घोर उससे शुरू हुआ चक्तिर्‌ रोग ধান হা 811 ক ই ঘা ই থকা নাহ ঘা খা त [भय पसग पनात्‌ पया कृती कोन अत्र पपं फिर নাইবা? ? वयर ङाचायं 6 ब्म तीन ककम हवनकं तीच प्रकार भ।९ हमरे एसी र्खमे दयसे पूवं -द्पिपवमी ५१ यशषी र्पो ४ प्रर्रमोप्रे तताय विन्या, इनकी फएरस्परर तुरना पालक कं१ (द जा्ेप्ाचान भाहि यद्धि कार्ते निर्मास अक्षकी प्रथा दोनेका भलुभन दृं । । सब बातें भिमश्नभिष् अमाणोका विचार क्रमेफे बाद यदि एक दी झपसे दिखा देने #गी, तो घह्दी भिजित गंझ है, ऐसा सागवा थोरय ४ । (१५९) लुध-वाद्धित-गाक्षिया | चेद्मन्रोमे कह से मत्र है फ्ि जहा शब्दार्यसे ऊुछ ধান্দা ীও দধীতা दोश है डदाहरणके क्षिये देखिये-- गोजिः भ्रीणीव मत्सरम्‌ ! ( क्र ५1४६।४ ) इसका गावदाव यद ए~-“ (गोभि ) गाशोऊे साथ ( मत्सर ) सोम ( श्रीणीद ) पक्ाजी । !! एसे भत्र देखकर छोग जमयें पड़ते है कि यह गोगासफ साथ सोस परहानेका या गिछानेकी भाषा ह। परंतु यह হাতে? দান कारण अम उपल होता है। याकरण तद्वित-प्रत्यथके सान अच्छा परिचय हुता तो यह अप्त मही षौ सकता, हय चि्यमे घी ० बाणकान्ययका उधम देद्धिय ~ अथाप्यस्यां चाद्धितेल छस्स्वणाक्चिगमा भवन्ति ५ शधि, श्रीणीत भरसर्मिति ' पथः । ( निरूक २।५ ) ^ तक्नितं प्रस्य ष्ठते सताने सहदे समि सिपू्णफा प्रयोग किया जता है, उष्टहरण * योगि। शीणीत मस्खर हमें ' गा शबदका অথ ' दूध ' है। ” इसी विषय यारहाचा्यका भौर कथत्त खुननेगीग्स ह--




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