गाँधी साहित्य मेरे समकालीन | Gandhi Sahitya Mere Samkalin

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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চে (4 হু ~~ अपूर्व थी। यह হাহা অত है कि वे जनता के आराध्यदेव ये, प्रतिमा थै, उनके वचन हजारों श्रादमियोके लिए नियम और कानूनसे थे । पुरुपोमे पुर्प-सिह ससारसे उठ गया। केगरीकी घोर गर्जना विलीन हो गई ।” अनुभूतिकी तीतन्रता ओर वास्तविकताका और भी सुदर चित्रण उनके सस्मरणोमे हुआ है। घटनाओं और वार्तालापके द्वारा उन्होंने वर्ण्य व्यक्तिकी बाहरी और आतरिक सुदरता-कर्पताकी रेखाओ्रोको इस प्रकार उभार दिया है कि इसके पूर्ण परिषाकके साथ-साथ व्यक्तिका सपूर्ण चित्र हृदयपर पत्थरकी लीक वन जाता है । कस्तूरवा गाधी, वाला- सुदरम्‌, देशवबुदास, घोषाल वाबू तथा वासती देवी झ्रादिके सस्मरण इस दृष्टिसे बहत ही सुदर बने है “में घोपालवाबूके पास गया । उन्होंने मुझे नीचेसे ऊपर तक देखा । कुछ मुस्कराये और वोले भेरे पास कारकुनका काम है। करोगे ?” मेने उत्तर दिया--/जरूर करूगा। अपने वस भर सबकुछ करनेके लिए में आपके पास श्राया हू 1” “नवयुवक, सच्चा सेवा-भाव इसीको कहते है ।” वूः स्वयसेवक उनके पास खड थे। उनकी ओर मुखातिव होकर कहा-- दिखते हो, इस नवयुवकने व्या कटा ?” । फिर भेरी ओर देखकर कहा, “तो लो यह चिट्ठियोका ढेर. देखते हो न कि सैकडो आदमी मुझसे मिलने आया करते है। अ्रव में उनसे मिलू या जो लोग फालतू चिद्या लिखा करते हं उन्हे उत्तर दू! इनमे बहुतेरी तो फिजूल होगी, पर तुम सबको पढ़ जाना। जिनकी पहुच लिखना जरूरी है उनकी पहुच लिख देना और जिनके उत्तरके लिए मुभसे पूछना हो पूछ लेना 1” उनके इस विब्वाससे मुझे वडी खुशी हुई। श्री घोषाल मुझे पह- चानते नथे। मेरा इतिहास जाननेके वाद तो कारकुनका काम देनेमे उन्हे जरा शर्म मालूम हुईं, पर मैने उन्हे निरिचित कर दिया-- कटा मे




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