व्यंग्य क्या व्यंग्य | Vyangya Kya Vyangya

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Vyangya Kya Vyangya by श्यामसुन्दर घोष - Shyamsundar Ghosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वकालत / १७ साथ हों और यह वकालत काम कर जाये। सबसे वडी बात तो यह है कि मांगे के बल के दांत नही देखें जाते। यदि कोई दूसरा वड़ा वकील कभी व्यग्य कौ जोरसे ज्यादा अच्छी वका- लत कर सका तो दूसरी बार (अर्थात्‌ दूसरे सस्करणमे) उसेही शामिल कर लिया जायेगा। लेकिन ऐसा कोई मोतीलाल नेहरू का पूत सामने तो आये ! अभी तो व्यग्य की ओर से जिन्हे वकालत करनी चाहिए वे व्यग्य को भुनाकर जीविका चलाने या महल-अठारी खडी करने मे ही व्यस्त है। किमादिकम्‌ । इत्यलम्‌ । पुनश्च, मेरे एक नेता-मित्र का विचार है कि व्यग्य की ओर से किसी चकालत की कोई जरूरत नही है । इसके लिए किसी नेता की पैरवी होनी चाहिए। ऐसा पैरवी-भाषण वकालत की अपेक्षा ज्यादा कारगर सावित हो सकता है। वकील जो कुछ बकता है पैसा लेकर बकता है। यदि वह मुफ्त में भी बकेगा तो ऐसा ही समझा जायेगा कि वह्‌ पैसा लेकर बोल रहा है !लिकिन नेता के साथ ऐसी कोई बात नहीं है और फिरमव स्थापालय पर नेता की बात का असर भी पड़ने लगा है क्योकि जज समझने लगे है कि नेता यदि चाहे तो उनकी वरिप्ठता का कत्ल कर सकता है। नेता की वात का आज के समाज में इतना असर है कि यदि वह व्यंग्य पढने को कहेगा तो “कल्याण” पढ़ने वाले भी व्यग्य पढने लगेंगे। मेरे मित्न का यह दृष्टिकोण विचा रणीय है । मैं चाहूया कि व्यग्य के पक्ष में ऐसे भाषण दिये जाय | ऐसे पैरवी-भाषण दूसरे संस्करण में छप सकते है।




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