स्वाधीनता संघर्ष और भगवानदास महौर एक विवेचनात्मक अध्ययन | Swadhinata Sangharsh Aur Bhagawanadas Mahaur Ek Vivechanatmak Adhyayan

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Swadhinata Sangharsh Aur Bhagawanadas Mahaur Ek Vivechanatmak Adhyayan by प्रशान्त सागर - Prashant Sagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारत कै स्वातन्त्र्य संघर्ष में आसेतु हिमालय से लेकर कन्याकूमारी तक ऐसा कोई क्षेत्र शेष नहीं रहा, जिसने स्वातन्त््य-यज्ञ-वेदी में अपने सामर्थ्य की समिधा न डाली हो, हर क्षेत्र का आन्दोलनात्मक आरेख अलग-अलग प्रकार का रहा है, राष्ट्‌ के प्रान्तीय क्षेत्रों में उण्प्र० के क बृन्देलखण्ड मण्डल की आन्दोलन में आयुधी अगुवायी किसी परिचय की मोहताज नहीं है । बुन्देलखण्ड (उण्प्र०) में सभी जनपदों के जुझारू जवानों की सहभागिता श्लाघ्य रही है, उसे बुन्देलखण्ड के सांग्रामिक इतिहास के पृष्ठों में अवलोकित किया जा सकता है। बुन्देलखण्ड के जनपदों में झांसी के सांग्रामिक इतिहास की अपनी एक अलग पहचान है, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जौहर ही उसे प्रमाणित करने के लिए पौरुष का एक ऐसा पुलिन्दा है, जिसके हर प्रष्ठ रानी के अप्रितम शौर्य के साक्षी हैं, साथ ही इस. ः . पुष्टि के प्रत्यक्ष दर्शी हैं। भारत की आजादी की लड़ाई में पूरे बुन्देलखण्ड ने संघर्षी कदम ताल की थी, उस पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लग सकता। बुन्देलखण्ड क्षेत्र का हर जनपद शूरता एवं वीरता के क्षेत्र में क्षात्रधर्मी रहा हे । भारतीय प्रान्त में तत्कालीन संयुक्त प्रान्त की वीर भूमिके रूप मे विश्रुत बुन्देलखण्ड इस प्रदेश का एेसा भू-कषेत्र है, जिसका शौर्य के क्षेत्र मे शीर्षं स्थान है। सत्तावनी पुरुष के पांचजन्य को रफ़कने के पूर्व ही हमीरपुर ` न्देललण्ड) के जैतपुर ने १८४२ भे ही संर्णी बिगुल बजा दिया था । | उसके बाद १८५७ मेँ बुन्देलखण्ड की रणधर्मी धमक से कौन अपरिचित है? `




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