स्वतन्त्रता पूर्व भारतीय राजनैतिक आंदोलन में बुन्देलखण्ड की भूमिका | Svatantrata Purv Bharateey Rajanaitik Aandolan Men Bundelakhand Ki Bhumika

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Svatantrata Purv Bharateey Rajanaitik Aandolan Men Bundelakhand Ki Bhumika  by दिवसकान्त समाधिया - Divasakant Samadhiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बुन्देलखण्ड के चंदेलयुग को हम राजपूत युग के अन्तर्गत लेते हैं। क्योंकि इसी ই | মি 1 युग की सभ्यता संस्कृति चंदेलयुग में विकसित हुई | कहने को तो चंदेलराजा हिन्दू धर्मावलम्बी थे परन्तु इन्होंने अन्य धर्मावलम्बियों के साथ किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया | इनके काल मे जहां शव ओर वैष्णव धर्मावलम्बियों ने धार्मिक स्थलों का निर्माण कराया वहीं पर ्र्र्र्र््ख़रबर खजुराहो, देवगढ़ बानपुर एवं ललितपुर के आसपास विशिष्ट स्थापत्य कला युक्त जेन मंदिरों . ক का भी निर्माण हुआ। आल्हखण्ड के अध्ययन से एसा प्रतीत होता है कि चंदेल राज्य मेँ रहने ` वाले मुसलमानों को भी काफी सम्मान प्राप्त था। आल्हखण्ड में सैय्यद, के नाम का उल्लेख अनेक स्थानों में उप्नत है। इस युग में जातीय भेदभाव नहीं था| आल्हखण्ड मे ही रूपनबारी का वर्णन कई स्थानों पर हे | [रि हे चंदेलों के रिक्त स्थान की पूर्ति बघेलें एवं बुन्देलों ने की। बुन्देले मूल रूप से कन्नौज के गहरवार वंश की एक शाखा थे, जो विंध्याचल प्रदेश मेँ आने के कारण बुन्देले 8... | कहलाए । काशीराज के एक राजकुमार हेमकुमार ने भी असंतुष्ट होकर विंध्यवासिनी देवी की गे ¢: 5 ५५६ , . शरण मे जाकर अनुष्ठान किया ओर पंचम नामधारी बनकर उसने सन्‌ 1048 मेँ गोहरा की ओर মা ` वि प्रस्थान किया | अपनी स्थिति सुदृढ़ कर उसने माहौन उरई) पर आक्रमण करके एक राज्य ः १ की स्थापना की। चूकि उसने अपने रक्त की वृदं से विंध्यवासिनी देवी की अर्चना कीथी, ` ২. र इसलिये उसके वंशज बुन्देले कहलाए। 16वी सदी से बुन्देलखण्ड के इतिहासमे एक नया ` ॥ রী | अध्याय प्रारंभ होता है, जिसमें बुंदेलों का उदय सूर्योदय के समान हुआ | सन्‌ 1531 में बुन्देला | টু. নি. की राजधानी ओरछा बन गयी | कालिंजर के किले पर बुन्देलों ने शेरशाह सूरी से संघर्ष किया, ` ५५ रा ध / जहां शेरशाह बूरी तरह घायल हो गया ॥ पा । हल চা ^ | (न । + 4. मोती लाल त्रिपाठी अशांत, : बुन्देलखण्ड का इतिहास पू05 ` 1 ( क्‍




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