वैदिक-छन्दोमीमांसा | Vedik Chandomeemansa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छन्दः पदु के अर्थ और उसके लक्षण ७ गायत्री च॒ बृहत्युष्णिग्जगती নিলি अनुष्टप्‌ पह्िरित्युक्ताइछन्दांसि हरयो रवे:॥ इनका भाव यही है कि सूर्य के सात अश्व अथवा ससविध रब्मियाँ मी गायत्री आदि नामो से व्यवहृत होती ई । गायत्री यथवा स्येन का स्वर्गलोक से पुथिवी पर सोमाहरणसम्बन्धी चैदिक कथाओं का रहस्य भी इसी में निहित है। सूर्यरश्मि के अर्थ में छन्‍्द: पढ का प्रयोग ऋग्वेद में भी उपलब्ध होता উ। শশা श्रिये छन्‍्दो न स्मयते विभाती | ऋ० ५।९२।६॥ अर्थात---भश्री (5 प्रकाश) के लिए छनन्‍्द के समान [ उपा | मुस्कराती ई प्रकाश करती हुई । ३-सप्तथास--माध्यन्ठिन सं० १७७९ की व्याख्या करते हुए शतपथ ৭1211 में छिखा है-- छन्दासि वा अस्य [ अग्तेः ] सप्ताम भ्रियाणि अर्थात्‌-छन्द्‌ दी निश्चय से इस [ अभि ] के सात धाम प्रिय ই। ये सात धाम कोन से ई, यह अनुसन्वेय रै । ४--अप्नि की प्रिया तनू--तैत्तिरीय संहिता ५1२॥१ में तित्तिरि का प्रवचन है--- अग्लेवे प्रिया तनू छन्दांसि । अर्थांत्‌- अम्रि की प्रिय तनू हो छन्द है | वैदिक साहित्य में इसी प्रकार अनेक अर्थों में छन्‍्द: पढ का प्रयोग मिलता है। ५-- वेदविदेप-- स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपनी क्ऋस्वेदादिभाष्य- भूमिका मे वचः ३१७ का व्याख्यान करते दए छन्दांसि का अर्थं अथववेद किया है |! | ठीकिक बाङ्य मे--कोन ग्रन्थो मे छन्दः पट के निम्न अर्थं उपलब्ध होते हैं-- क -छन्दुः पद्येऽभिदापे च 1 अमर ३।३।२३२॥ १, (छन्दांसि ) सथर्वच्दश्च 1......... चेदानां नायन्यादिछन्दोन्वि- सतया सुनरछन्दांसीतति पटं चतुर स्याथवेवेद स्योत्पत्ति इ्ञापयतीति अवभेयम्‌ | ऋ्वेदादिभाव्यभूमिका? वेदोत्पत्ति भ्करण | | -




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