वेदोदय [भाग-4] | Vedodaya [Bhag 4]

Vedodaya [Bhag 4] by विभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ । 11111 1) ८ 2 | | |111111,1)111111// ४ ]. ५ ২৬ ১১৯ ১৭ ১170 (11117111 11111111 गी मुनि का तपस्तेज [ श्री पं शंकरदेव व्रि्यालङ्खार गुरुकुल मूपा | गा नदीं का पवित्र পিলাবা আ। হালিক্ক ऋषि वहाँ पर सु दर पर्शशाला बना कर निवास करते थे । मुनि बहुत सबेरे स ही उठ कर ध्यान प्रारंभ कर देते थ। ठषा की लाली फूटत ही पंखी आश्रम क्षो पर मधुर गान प्रारंभ कर देते थे। मुनि हवन करते, जप जाप करत ओर बंद मंत्र गाते थे। मध्याह होता और मुनि का ध्यान समाप्त हो जाता। वे कुछ নল फल खाते और पानी पोते थे । यही इनका नित्य का काय-क्रम था | ध > मु मुनि का एक सुपुत्र था। खूब हरी सुद्र । मानां दूसरा चाँद | बड़ा ललाट ओर तजभरी आँखें । मुनि ने उसका नाम रक्खा था - श्रगी। श्र गी प्रति दिन पिता की सवा करता ओर जब वे जप ध्यान में लग जात तो स्वयं गंगा के किनारे खेलता कूदता रहता । एक दिन का बात है। मध्याह्न बीत गया था। आश्रम में शमिक मुनि अपन ध्यान में मग्न थे। शंगी गंगा तट पर अपनी खेल कूद में मशगूछ था। इतन में राजा परीक्षित आश्रम में आ पहुंचे ! राजा जी आज मंगया ( शिकार ) करन बन में निकले थे ! वन में घूमते धुमते उनका गात थक गया। प्यास कं




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