सूरज की आहट | Suraj Ki Aahat

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Suraj Ki Aahat by सावित्री परमार - Savitri Parmar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भीतर वा दिन भर जी-तोड मेहनत करता और रात फो उनका लदका, जिसका नाम मोतीराम था मु पढाता मिडिल पास था हो पहले से, रात दिन मेहनत करा मर मुझे दसवी पास बरा दिया बस यहो से मेरी बहानी बदल रही है बावा, दो घूट पहले पानी दो न बाबा दौडकर पानी लाया पिया लेविन कडवा लगा जैसे पूरा किस्सा ही निचुडकर गले में आ बैठा है ! नही बर रहा जी वुछ बहने को, पर लगता है बिना बाल ही कोइ निवालकर सव कुछ बावा को ल्खिला दे बावा फिर सुनने की मुद्रा में बैठ गया ओर हाथ फिर अपनी मुट्ठी म दवा लिया दोना मा्खें सवाल बनी थीं कही मानोगे ठुम सुने बिना, सुन लो इस निपट अनजान षा किस्सा और बढा लो दद पर दद वी पत आवाज फिर डूय सी गई और मन बही जा पडा गहरे मे बाला-- मैं दसवी हो गधा बाया सेठ का प्यार मुझ पर पूरा था बोले- “अब क्या घर का वाम क्शोगे लो द्ुवान यो मुनीमी सभालो ! मन खुश हो गया उनके लड़के को भी वात जची और मैं तीन चार हित वाद ही दुवागन परमुनीमी मारत लगा साल मजे में वद गया घर-दुवान दाना जगह प्यार मिलता आदर मिलता देह चभक उडी चेहर पर गूलावीपन भा गया मांतीराम ने कसरत का शौक डाल दिया सा बदन लोहे का हो गया सेठानी भी मातीराम की तरह मानती एक दिन राठ्जी ने दुकान पर सो रुपये देवर कहा--लो ये रुपये रखो घी, दूध बे लिए जरूरत पडे और ते सेना मैंन वे नोट उद्ी को वापिस कर दिए और बहा-'मुझे क्या कमी है खाने वी सब घर वा खाता हू स्पय नहीं लूगा जरूरत पर माग लूगा ” इससे पूर घर में मरी ओर कदर बढ़ी असौज, नही इसके बाद का महीना था घर वे सामने एक बैलगाडी आकर रुवी और सेठानी के भावज भैया उतरे देया कभी था नहीं सुना था वि सदा बीमार रहने वाला भाई है बस उसी से पीहर जिंदा है वह गया ता कोई नाम लेन वाला नही रहेगा इलाज कराने बुलवाया है मरी बचपन से आदत थी कि वालना कम और सब कुछ देखना चुपचाप घर के दूसरे नौकर ननकू के साथ सामान उतरवा लिया सोचा शहर म आए हैं सो बैलगाडी लेकर आने स अच्छा तागा था ? तभी बाहर से विसी ने सुजन बाबा को आवाज दी, बात रुक गई बाहर से वाबा पी झिडकी सुनाई दी- अरे | कहन दीनी के नाही जाना है देख रहे हा बल पगुरा रहे हैं भीतर महमान जूडी भे झुलस रहा है ग्राडी नहीं जावगी अरे | तुम दस रुपया छोड बीस दओ तो भी नहीं सरकतने के रुपया कौन बाप है हाथ जोरी, नाही चलन के है * लोगो के लौटने की आहट मिली बाबा उसी यूझलाई मुद्रा मे आदर आया मनोहर न कहां--बावा ! क्यो दस स्पया छोड दढे ? चलेजात न॒मैं तुम्हारे पीछ सूरज की आहठ/१५




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