उपनिषदों की कहानियाँ भाग - 1 | Upanishadon Ki Kahaniyan Bhag - 1

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Upanishadon Ki Kahaniyan Bhag - 1  by श्री. रामप्रताप त्रिपाठी शास्त्री - Shree Rampratap Tripati Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १२ ) एकेश्वरवाद, क्रिश्चियनो की रहस्यवादिता, शोपेनद्वार के दाशनिक विचार, राजा राममोहन राय के ब्राह्म समाज की मूल भावना, स्वामी दयानन्द, कवीन्द्र खीन्द्र और योगीन्द्र अरविन्द की विचारघाराएँ उपनिषदों से अत्यधिक प्रभावित हैं। शंकराचार्य, रामानुज, बल्लभ, माध्व श्रादि आचार्यों ने तो इन्हीं की पृष्ठभूमि पर अपने सिद्धान्तों की अवतारण की है। यह सही है कि उपनिषदों की विचारधारा में जीवन के संध्या काल--संन्‍न्यास आश्रम--के श्रनु भवों के श्रमूल्य पवित्र विचार सगद्दीत हुए हैं और ये आये जीवन के सन्यास आश्रम की स्थिति के प्रतीक हैं, किन्तु इससे यह नहीं मान लेना चाहिए कि इनमें लोकजीवन या लोकसंग्रह की मावनाग्रंका जान ब्रुभकर निरादर किया गया है। कहना तो यह चाहिए कि प्रथम के तीनों श्राश्रमो का सारतत्व मी इनमें आग गया है। इनके विचार इतने गूढ, उदात्त और व्यापक हैं कि इनसे सत्र स्थिति के लोग, समान लाभ उठा सकते हैं। यही कारण है कि क्या स्वधर्मों क्या विधर्मी, क्या पोर्वात्य और क्या पाश्चात्य--सभी विचारकों के लिए ये प्रेरणा ओर स्मृति के खोत हैं। व्यापक मानव धर्म आर उनके जीवन-दशन के क्षेत्र में ये किसी भौगोलिक रेखा से आपरद्ध नहों हें ओर न काल की सीमा रेखा ही इनकी प्रसिद्धि और सनातनता में कोई बद्धा लगा सकी है। ज्ञान और अनुभूतियों का, मस्तिष्क और हृद्य का इनमे पेता मधुर समन्वय है कि कहीं विषमता का कोई, पता भी नहीं चलता । यद्यपि विषय की व्यापकता के कारण सभी दश न एवं सम्प्रदाय अपने मतों को पुष्टि के लिए उपनिषदों का आश्रय लेते हैं, किन्तु उत्तर मीमांता वेदान्त दशन--की द्वी विशेष विवेचना इनमें की गई है । यही कारण है कि आचाये श्र ने अपने मत के प्रतिपादन में स्थल-स्थल पर इनका उपयोग किया है। ब्रह्म की ब्यापकता, आत्मा की नित्यता, लौकिक सुख कौ ऋ्षणभंगुरता, मुक्ति की उपलब्धि आदि विषयों का इनमें प्रमुख रूप से प्रतिपादन किया गया है । यद्यपि ये वास्तव में ज्ञान काण्ड के




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