स्वप्न | Swapn

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Swapn by रामनरेश त्रिपाठी - Ramnaresh Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला सग [ १९. | २० | खेर रदी ह जिन पर जल की वृदं मुक्ता सी द्युति धरकर। पैसे पद्म-प्न से पुरुकित विमल सरोवर में नोका पर ॥ कहते हुये पद्य से खुन्दर ललना के है दग मुख छर पद्‌ । उसको रोमाश्ित करने से बढ़कर ओर कहाँ सुश्व फी इद्‌ ? | २१ | पक बद्‌ जर घन से गिरकर सरिता के प्रवाह में पड़कर। जाता हूँ मैं फिर न জিরা? यह ॒ पुकारता हुआ निरन्तर ॥ चला जा रहा है आगे से कैसा है यह दृश्य भयावह । इस अस्थिर जग मे क्षया मेरे लिये नहीं है चिन्तनीय यह्‌?




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