श्रमण भगवान महावीर तथा मांसाहार परिहार | Shree Man Bhagwan Mahaveer Tatha Mansahar Parihar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ इससे मुझे विशेष रूप से सक्रिय प्रेरणा तथा उत्साह मिला और दृढ़ सकल्प बनने में सहायता मिली । मैने उनमें से कुछ उपयोगी मोट्स इस निव में स्वीकार क्ये हैं। अत मैं उन सब प्रेरणादाताआ वा आभारी हैं । मैंने इस निवाय को ईसवी सन्‌ १९५७ में अम्वाला शहर पजाय में लिखना प्रारभ विया और पूरे दो वप के सतत परिश्रम वे' बाद ईसवी सन्‌ १९५९ वा छिसवर तैयार हो गया । में सन्‌ ईसवी १९६२ को दिल्ली भा गया। इस नियन यो तैयार करने में कई अडचनें, प्रतिवप और असुवि- घाओ तथा साधन-सामग्री वे अमाव ये यीच में से गुजरना पडा । येन-केन प्रवारेण साधन सामग्री जुटावर और सत्र अठननों बा सामना परते हुए यह निवाथ ईमवी सन्‌ १९५९ में तैयार होरर पूरे पाच वष थाद आज सन्‌ एग्वी १९६४ में श्री आत्मानन्द जैन महासभा पजाव द्वाग प्रगाशित टावर आपसे ঘন বলল বধ ঘটল নানা ই | आएा तो थी यह्‌ जल्दी प्रकाणित হালা रकि “श्रेयामि बहु विध्नाति/ छोवाबिन যহ্য শী সলত ননী । भय मरी पह हादिव মালনা £ ছি ভা লিলপ্ন শা অনা নাঘালা में आपुयाद होपर विश्वभर में सव्र प्रचार हों, जियसे जैन पम, जैन तीपबरा, ऊन आगमो, जय मुनिया तथा जैत गृहस्था पर लगाये गये वितानत मिथ्या जाक्षेपा था तिरानन हारर इसबा साय और वास्सत्रिया स्वरूप थे विष्य झा मापव-समाज परियित हो । अटिसा प्रेमी मटाउभावा या इसके मयत प्रचारमे ए इस विश मवे द्रप स्याम प्रासान्‌ देने रहना হালি | হা লি में भह सप्रमाण सिद्ध किया गये ६ हि নিশাত सायपुण সমন নমনান मोपीर ते उमम तथा अपवाद परिम नमू मे प्राण्यम মালাতা प्रात वहा विया और हो पार सकते तदा (भप पिर) मा आजा शिया अवत्य पदाप प्रहणा गए सक्‍त्के (संग माग चट [রা টি আ प्रधान माग ऐ । मङ्कि केऽ 'যামযালান 1918. 1.11 1 न बग्पु नही । -




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