मिलन यामिनी | Milan Yamini

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Milan Yamini by बच्चन - Bachchan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. (६ ) श्रकस्मात यह बात हुई क्यो जब हम-तुम मिल पये, तभी उठी आधी भ्रम्बर मे, सजल जलद घिर आये, यह रिम-भिम सकेत गगत का, समझो या मत समभो, सखि, भीग रहा प्राकार कि हम-तूम भीगे '” >< प्र >< “हम किसी के हाथ मे साधन बने हुः सृष्टि की कुछ माँग पूरी हो रही है, हम नही अपराध कोई कर रहे हें, मत लजाओ, और देखो उस तरफ भी-- प्राण, रजनी भिच गईं नभ के भुजों में थम गया है शीश पर निरुपम रुपहरा चाँद, मेरा प्यार बारस्वार लो तुम और उसके बाद “किन्तु तृण-तृण श्रोस छन-छन कह रही, है भ्रा गईवेला विदाके श्रसुश्रो की यहु विचित्रे विडम्बना पर कौन चारा, हो न कातर, और देखो उस तरफ भी-- पाण, राका उड गई प्रात पवनं मे, ढल रहा हँ क्षितिज के नीचे शिथिलतन चाँद मेरा प्यार श्रन्तिम बार लो तुम” । नि सन्देह “मिलन यामिनी' की इस प्रकार की कविताये पठढकर एक विशेष प्रकार के श्रादशेवादी पाठको के मन मे प्रतिक्रिया होगी कि कलाकार रसातिरेक में बह गया, उसका वर्णन आवश्यकता से अधिक अनावृत हो गया, श्लील की डोर शिथिल हो गई ..और ये, कि कुछ चीजे हे जो कही नही जाया करती, छपाई जाया करती हें, आदि आदि । इस आलोचना के उत्तर मे हम कुछ न




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