विहारी-सतसई भवार्थ प्रकाशिकाटीकासाहित | Bihari - Satsye Bhavarth Prakasikatikasahit

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Bihari - Satsye Bhavarth Prakasikatikasahit by पं ज्वालाप्रसाद जी मिश्र - Pt. Jwalaprasad Jee Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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67... न हि कक ९१. ২1) ९ सतसंहभे साहिस्यदिषयक जो वणन अश्र ह सप জীন कसते साहित्यदर्पणम्‌ ' वाक्यरसात्मककीवये नदना व्यप्रकाक्म ' तददोषौ शब्दार्थौ सणणवदच्कृतिः पुनः कपीति ° और रसरदस्यक कवि करतें । जगत ऋद्धत पुखबसदद, शब्द रु अथ कृवित्त्‌ ॥ यह्‌ रक्षण मेने क्षिय, सक्च मन्थ बह चित्त ॥ इसमें जगतपे अद्भुत सुख लोकोत्तर चमरश्रकारी नाम काव्य कथन इहै, इसपेभी यह विदित होतहि शि, इक विना सुख की भाप्ति नहीं इस कारण जिस कवितामं रप सुख ले्षोत्तर चम- स्कार है वही काव्य कहाताहै, काव्यके अनेक भेद हैं तथा ठसकी शक्ति अभिषालक्षणा व्यननादिका विस्तार साहित्यग्रन्थोर्म विस्ता - सके साथ लिखाहै, यहां फेवल प्रयोजनीय विषयको वणन करते ই जिसके होनेस काव्य कहलातहै वह रस क्‍या है । मिले विभाष जनुभाव अर, एंचारी सुझबूप ॥ व्यंग्य कियो थिश्भाव जो, सोई रस सुख भृपः ॥ अपनी सामग्रीप्रधान मनोविकार उसके ভা उसके काय्य और सहकारी मनोविकार यह कमते स्थायीपाद विभाव अनुभाव संचारीभाव कहाते हैं इनके योगप्त पृष्टहुए स्थापीभावकों रस कहने हें । नाटक देखने काव्य पटने जो एरु विज्णग सुख आहनंइ जाप्त होता है उसका नाम रस है, चमत्कार कहनेझा आशय यह कि, पाखार अहुभर कर्णप्ते सुखहीकी प्राप्तिहों इस प्रकारका विलक्षण आनंद कविर्नी रचनावातुर्गसे प्रगट होता हैं




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