आधुनिक हिंदी कवियों के काव्य - सिद्धान्त | Aadhunik Hindi Kaviyo Ke Kavya -Sidhant

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Aadhunik Hindi Kaviyo Ke Kavya -Sidhant by सुरेशचन्द्र गुप्त - Sureshchand Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२्‌० झाछुनिक हिन्दोजवियों के वाव्य-निद्धान्द जस्या 1 मारतन्दु युग को स्पिदि खदतू १६२४५ से १६५० तक रहो थो 1 सदन १६०० से १६२४ तब वी पक्‍्रवधि मे कदियों ने शिसो विशेष विदग्धठा वा परिचय नहीं दिया था । अत इस प्रदन्ध में वाब्य निद्धान्त-विवेदन के लिए लवत्‌ १६२५ की परवर्तों हिन्दों- বিভা वा मध्ययत किया जाएगा। प्रवन्ध की प्रस्तावित योजना प्रस्तुत प्रबन्ध दा प्रतिपाद भापुनिव हिन्दी-कवियों वे दाब्य-विषयक विचारों बी विस्तृत समीक्षा है। भतः विवेचन को सुविधा ঈ লিহ िन्दी-गोन्य क দাছুনিত दुग को निम्नलिखित चरणों में विभक्ष किया जा सबता है-- (१) भारतेस्दु युग (मवत्‌ १६२५१२५०) (३) द्िदेदो युग (सदत्‌ १६५०--१६७५) (३) वर्तमान दुग-- (प्र) राष्ट्रीय-साम्हतिक कविता (उवन्‌ १६५५ प्रव ठ) (प्रा) छाथावाद युग (रूदत्‌ १६४७५--१६६४) (६) वैयक्तिक कविता (सदत्‌ १६६०--भरद तक ) (६) प्रगठिवादी बबिता (বল্‌ 1২২ भब ठव) (उ) प्रयोगवादो बविता (सबत्‌ १६६४--प्रद तक ) उप बाध्य-घरपों में कवियों वे बाब्य-विषयक् दृष्टिकोघ में मौलिक ল্য उपलब्ध होता है। অল यह पावश्यत है कि इनमें प्रस्तुत बी गई याब्प-सान्यतापों दी पृषह-पृषक्‌ समीक्षा को जाये। इसके लिए कवियों द्वारा प्रतिषादित प्रत्यक्ष काब्य-मर्तो वो चर्चा के प्रतिरिक्त झनुगम शैत्ती का झापार लेबर उनकी वाव्य-्मान्यताझों वो निष्कपित भी किया जा सता हैं। विन्तु, प्रमुख वदियों के काव्य-सिद्धान्तों को विस्तृत चर्चा बे उपरात्त प्रत्येद चरप वे स्‍न्य बवियों वे! साहित्य-विद्धान्तों को बेदत सासूहिर चर्चा हो सम्भव हो सकेगी । उपलब्ध सामग्री झाधुनिवयुयोन हिन्दी-कदियो वो वाब्य-मसान्यतामों कौ गोष की दिशा में झाजो- নানি प्र्यन्त भत्प कार्ये किया है। प्राय' उनका प्यान रीतिवालोन कवियों के बाच्य- सिद्धान्तीं को खोज पर हो बेन्द्रित रहा है। भाषुनिक युग वे कवियो ने इस क्षेत्र में सेति- वालोन वर्वियों से कम कार्य नही दिया है, तथापि उनके নাহ वे दिधिवत्‌ ऋध्ययन को दिपाने ममो मूषि घ्यान नहों गया है। इस विषय में देवल निश्नलिखित उल्लेखनीय सामग्री उपलब्ध होठी है-- (१) हिल्दोजाव्य-थास्त्र वा इतिहास (आपुिक काल से उम्दद স্ব) सेखब--डॉ० मगोरय मित्र 1 २. दिदि काव्य शाम्त्र का इनिद्ान, पृष्द इश४ ४२




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