ईश्वर की सत्ता और महत्ता | Iswarki Sata Aur Mahata

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Iswarki Sata Aur Mahata by हनुमानप्रसाद पोद्दार - Hanumanprasad Poddhar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वामी रामतीर्थ (संकलित) ऋषिकेदाके पासका जिक्र दै कि गङ्गाके इस पार बहुत साधु रहते थे ओर उस पार एक मस्त रहता था ¦ उसके रगेरेरमे (अनहरृहक) रितोऽह' बसा हुआ था । रात-दिन यह आवाज आया करती थी- 'शिवो5हम, शिवो5हम, शिवो5हम, शिवो5हम्‌?” एक दिन वहाँ एक शेर आया। साधु इस पारसे देख रहे थे कि शेर आया और उसने महात्माकी ओर रुख़ किया । वह महात्मा रेस्को देखकर उच्च स्वस्से कह रहा था--'शिवोऽहम्‌, शिवोऽहम्‌ । उसकी धारणामे यह जमा हुआ था कि यह शेर मैं ही हूँ, सिह मैं ही हूँ। स्वय केसरीके शरीरमे खर भर रहा हूँ--'शिवोहहम्‌, शिवोऽहम्‌ 1' वमराजने आकर इनके कथेको पकड लिया तो वह (महात्मा) आनन्दके साथ सिहके रूपमे नर-मासका खाद्‌ কি হই थे ओर आवाज निकल रही थी-- 'शिवो5हम, शिवो5हम॑ ।' दीवालीमें खाँडके खिलौने बनते हैँ । তিক हिरन और खॉडके शोर। अगर खॉडका हिरन अपने-आपको नाम-रूपरहित विशेषणके साथ समझे कि मैं हिरन हूँ तो क्या वह यह कहेगा कि खॉडका शोर मुझको खा रहा है। यदि वह अपने-आपको खॉड मान ले तो खॉडका मृग कह सकता है कि खाँडके रूपमे मैं ही इधर हिरन और उधर चोर हूँ। इसी तरह जब तुम जानो कि तुम्हारी असलियत क्या है, वह इस खाँडके अनुरूप ईश्वरका स्वरूप है। अत इस खॉडके शेरकी दशामें तुम ईश्वस्की हैसियतसे यह कह सकते हो करि मै इधर हिरन ओर उधर होर हूँ।




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