निर्ग्रन्थ भजनावली | Nirgranth Bhajnawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रकित १. सायु के निमित्त बनाया आहार २ सौद शिका कृतक्रीत2 नियाग3, अभ्याहृत३ एवं निशा-प्रशन | स्नान गंव माला धारण, सुख हेतु व्यजन का संचालन संनिविः गृहस्थ पात्र मे भक्षण, राजन्य पिण्ड ्रौर धेत-अरन । संवाहन श्रौर दंत शोघत, संप्रच्छन्नर निज देहालोकन ।। नाली? से श्रष्टापद क्रीडन, मही से छर ग्रहृण करना | चेकित्स्य उपानह्‌ का वार्ण, पावक का सरंज्वालन करना || 2 शय्यातर का पिण्ड और, वेत्रासन सुख पर्वक-ग्रहरा । बैठना ग्रहस्थ घर में जाकर, करना शरीर का उदुवतंन ।। करना गृहस्थ जन कौ सेवा, ब्रौर्‌ जाति वता মিলা श्र्जैन 1 श्रद्ध पक्व सेवन करना, यः रोमाचस्था में ऋन्दन \\ मूला सिगवेर-सेवन'०, शरीर इक्षुखण्ड जो ग्रहण करे । शूरण श्रादि सजीव मूल फल, तथा वीज का प्रशन करे | सौवर्चल सन्वव श्रौर ख्मा, सागर से निकले तथा लवण । ऊपर और काले लवणों का, मुनि करे सचित्त का है वर्जन ।। रोग शान्ति हित धूप वमन, श्रौर वस्ति विरेचन का सेवन । ग्रंजन और दांतों का रंगना, अ्रम्यंग तेल से तन-मर्दन ।। १. साथु के लिए खरीदा आहार ३. निमन्त्रण से प्राप्त श्राहार ४. सामने लाकर दिया आहार ५. रात्रि में प्राह्मरादि का संचय ६. शरीर की मालिश ७. गृहस्थ के साधन ६. चौपड़ शतरंज प्रादि खेलना १०. अदरख ११. संचर हेस्थ से कुजल पूछता ८. जूए चमक ।




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