विवर | Vivar

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Vivar by समरेश बसु - Samaresh Basu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- से निकल गया था; ना : साला !' फिर भी सर्वप्रश्मम जिस दिन यह जान पाया, कि नीता अकेले मेरी नहीं है उस दिन, उफ ! ণ্হ मडर, हिच आई थॉट सेक्रीफाइस : आई सा दाइ हेंडकर- चीफ |” लेकिन मैं उसके बाद कई दिनों तक अकेला-अकेला ही दसता रहा, त॒म साधु पुरुष हो ! और नीता चरित्रहीन, विश्वासधातिनी है ! तम्हारा सर ! जो तुम हो, वही में हूँ । यह तो जानी-बूकी बात है, बावा ! उफ्‌ | ख्याल ही न रहा, कब सिगरेट खत्म होने को आईं, आग की गर्मी होंटों को छू रही है । शायद होंठ जल ही गये | लाल हिस्से के साथ अट्के थाग के टुकड़े को जल्दी में हाथ से हटा दिया और बॉई ओर घूम गया | नीता की खुली पीठ पर रखे वायें हाथ पर शरीर का बोक रख, दूसरे हाथ से कुछ दूर पड़े टी-पाय पर रखे एश-ट्र में सिगरेट का टुकटा डाल दिया । हॉट चाट कर महसूत करना चाहा, नच ही जल गया है क्या ! आईने के प्रतिविम्ब में होठ उलट कर देखना चाहा, शायद फफोला नहीं उठा है | लेकिन जलन हो रही है, ताप लग रहा है। और इसका अनुमच करते समय लगा, बाँया हाथ बफ पर पड़ा है | ठंडा और सख्त, प्रायः भूल हो गया था कि नीता डेड, यानी मरी पड़ी है । लेकिन अब तक तो इतना ठंडा नहीं लगता था। इतनी थी भी नही । अब लगता है, जेस टंडी और सख्त हो गई है | उसकी सुगठित पीठ की वह कोमलता अब अनुभूत नहीं होती | मैं दाहिने हाथ से अपना गाल और मूँह छ लेता हैँ । कितना फर्क ई! अगहन का महीना, ठण्डक तो है ही। বন লী ভু अपने हाथ, मूह पर ठण्डक के बावजूद गर्मी महसूस होती है। और नीता के शरीर की टण्डक, इसे ही शायद “मृत्यु की शीतलता' कहते हैं | और मेरे अन्दर क्या यह “जीवन की उष्णता' है? हो भी सकता है| लेकिन नीता जो निश्चित रूप से मृत्यु शीतल है, इसमें कोई सन्देह नहीं। इसके पहले मत मनुष्य की देह पर मैंने कभी हाथ नहीं रखा था | मृत के पति श्रद्धा दिखाना धर्म है। जानता हूँ, लेकिन सच कहूँ तो मेरा मन घिन से भर उठता था। इस तरह, जेसे मैं साँप की देह पर हाथ रख रहा होझेँ। भय मिश्रित सिहरन मुझ में होती थी । लेकिन नीता के सम्बन्ध में, मुकको ऐसा कुछ नहीं लगा | शायद इसलिये तो -नहीं कि, उसकी देह मेरे लिये अधिक जानी-पहचानी थी १ या इसलिये तो नहों कि उसकी देह हमेशा झुकको वेहद सुन्दर और यच्छी लगती रटी £, थौर अब भी उसकी पूरी देह में एक सुन्दर गंध है १ सुके घिन नहीं लगती और माव के ग्रति एक अलौकिक मय से मैं सिहर नहीं रहा हूँ । पेना इ है जरूर, [ १० ]




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