श्रीगयामहाकाव्यं | Shrigayamahatmayam

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shrigayamahatmayam by अरुणोदय राय - Arunday Ray

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अरुणोदय राय - Arunoday Ray

Add Infomation AboutArunoday Ray

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दितोयोऽध्यावः। १३ खान्निध्यं स्॑तीर्थाना गयातीर्थं ततो वर ॥ ५५ ॥ इति ओीवायुएराणे श्वं तवारादकल्ये বাআালান্বাভীন पिण्डदान फल कथनं नाम प्रथमोऽध्यायः ॥९॥ द्वितोयोऽध्यायः। ৩ नारद छवाच। गवासरः कथश्ूतः किप्रभावः क्ििमात्सकः। तपस्तप्तं कथं तेन कथं टेदपविततता ।१। सनत्कुमार छवाच । विष्णोनस्यम्ब्‌.जाव्नातो त्र्या सोकपितामदः। प्रजाः खख संप्रोक्तः पूवैदेवेन विष्णुना ॥२॥ आसुरीव भावेन असुरानख्जत्‌ एरा । सौमनस्येन भावेन देवान्‌ सुमनरोऽख्जत्‌॥ ३॥ ओर कोई स्थान नही दिखाई देता, इस स्थानमे सब तौर्थ (िराजते हैं, इसौसे गयाचेत्, सर्मतीयोंसे श्रेष्ठ है । ५५ । इति प्रधम अध्याय । नारद बोले, गयासर कोन है, उसका ग्रभाव केसा है, उसका शरोरहौ केसा है, किस भांति उसने तप्रस्या कौ थी और किस भांति उसकी देह प्रविच्र चुई? यह सब कछिये 1१९। संनतृक्षमार बोले, जोकके पिवामहऋ ब्रह्माने विग्ण॒क्ते नाभिके कमलसे उत्पन्न होकर देवदेव विश्युके आदेशसे प्रजाकी - কষ্ি জী । । ५। उन्होंने पूलव्वकालमें ऋरभावसे असुरोंकी और २




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now