हमारी पूज्य तीर्थ | Humare Pujye Teerth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस प्रकार देश में अनेक तीर्थ हैं, जिनकी यात्रा मनुष्य मात्र के लिए, स्नान, ध्यान, दर्शन, पूजा-पाठ और दान-पुण्य करने पर पापों से मुक्त कर मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। तात्पर्य यह है कि तीर्थ-यात्रा से मनुष्यों को महान्‌ पुण्य की प्राप्ति बताई गई है। वहां जाने पर उचित रीति से विधिवत्‌ कर्मकाण्ड करने पर मनुष्य के सम्पूर्ण पाप-ताप उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जैसे भगवान सूर्य के उदय होने पर अन्धकार समाप्त हो जाता है। वहां जाने पर मनुष्य देवाधि देव हो जाता है, क्योंकि वह तीर्थ जाने से पहले अपने शरीर की सदाचार, सद्विचार और सदुपासना द्वारा विशुद्ध बना लेता है, जिससे तीर्थ-यात्रा का महान्‌ उद्देश्य सार्थक हो जाता है। तीर्थ का फल किसे मिलता है ! तीर्थ स्थान पर पवित्र मन से संयमपूर्वक रहना चाहिए। मुन, शरीर तथा वाणी से जो स्त्री-पुरुष पवित्र होता है, उसे ही तीर्थ का सुफल मिलता है। क्रोध, लोभ, मोह, ईर्प्या-द्वेष मन में नहीं रहना चाहिए। तीर्थ में दिए यए दान की बड़ी महत्ता है, पर दान यथाशक्ति ही देना चाहिए। मेहनत और ईमानदारी से कमाए एक पैसे का दान भी बहुत कीमत रखता है। इसके विपरीत चोरी, बेईमानी, ठगी या अन्य किसी बुरे मार्ग से कमाए हजारों रुपयों का दान भी कुफल ही देता है। तीर्थ जाने से पहले तन-मन-धन से अपनी शुद्धि कर लेनी चाहिए और ती र्थ से वापस आकर ब्राह्मण-भोजन, कीर्तन, कंथा-वाचन या पितृश्राद्ध अवश्य करना चाहिए। तीर्थ के दौरान शुद्ध भोजन करना चाहिए। यदि किसी अच्छे दिन का उपवास रखें तो और भी उत्तम ! तीर्थ में दान नही लेना चाहिए। नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। तीर्थ के दौरान प्रतिदिन स्नान-ध्यान करना चाहिए। दुर्गुणों पर विजय पाकर ईश्वर मे लीन होकर जो व्यक्ति तीर्थ दर्शन करता है, उसे तीर्थ-यात्रा का फल अवश्य मिलता है।




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