शंकर और स्पिनोज़ा के दर्शन में सत का स्वरुप | Shankar Aur Spinoza Ke Darshan Me Sat Ka Swaroop

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Shankar Aur Spinoza Ke Darshan Me Sat Ka Swaroop by राजेश कुमार मिश्र -Rajesh Kumar Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय - 6 उपसंहार - उपर्युक्त प्रकारेण शकर एव स्पिनोजा के परम सत्‌ एव इन पर तुलनात्मक रूप से विचार करने के साथ-साथ इनके बन्धन या मोक्ष या मुक्ति पर दृष्टिपात करने से सुस्पष्ट है कि इन दोनो की दार्शनिक विचारधारा अद्वैतवाद की समर्थक है। इनके विचारो मे बहुत कुछ समानता हे। दोनो का ब्रह्म एव द्रव्य बहुत कुछ माने मे एक समान हे | जगत सबधी विचारो मे भी बहुत कृष समानता हे। बधन एव मोक्ष के बारे मे कष्ठ भिन्नता अवश्य है किन्तु दोनो मे मूलत आत्मा का काम-वासना से युक्त জলা होकर अपने वास्तविक रूप को भूलना ही बन्धन माना है तथा आत्मा द्वारा $ 1. अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान होना ही मोक्ष है। यद्यपि इसके प्राप्त करने तथा प्राप्त होने पर (मोक्षावस्था मे) आचरण करने के बारेमे दोनो मे कष्ठ अन्तर अवश्य हे किन्तु मूलत दोनो इस क्ेत्रमे भी समान विचार वाले हे इन बिन्दुओ पर विस्तृत रूप से आगे अध्याय - छ मे विचार किया जायेगा |




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