अशांत | Ashant

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Ashant by विनोदशंकर व्यास - Vinod Shankar Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अशान्त ल्लित---आप कब तक गाँव ঘহ আবী ? चार दिन बाद जाऊँगा, और तुमको अपने साथ ले चहूँगा। क्या अबकी ही बार ज्ञापके साथ चछनां होगा ? हाँ, जितना मैं कहता हूँ, उत्तना करना होगा । ललित माँ के पास पहुँचा। कहा--माँ, चांचाजी के साथ गाँव पर जाना होगा । कहते हैं, अबकी बार मेरे साथ ही चछना होगा | माँ ने कहा--ठीक तो है। बेटा, घर का काम देखना ही चाहिये । तुम जानते हो कि तुम्हारी चाची से मेरी नहीं बनती; नहीं तो में भी तुम्हारे साथ ही चकछतो। पर कोई चिन्ता नदीं, तुम जाओ, कभी-कभी यहाँ आते रहना । माँ का उत्तर पाकर ऊछक्तित समझ गया कि अब जाना ही पड़ेगा, दूसरा कोई उपाय नहीं है| दुलारी का साथ छोड़ना उसके लिए सबसे कथन कार्य था। न वह' दुलारी को बिना देखे रह सकता था और न ठुरारी उसके बिना 1 े दुलारी से मिलने के लिए ललित गया था । चह अपने स्कूल की पान्य पुस्तक पद्‌ रही थी } ररित ने कहा--दुखरी! पद रह दो? हाँ। आज-कल पढाई पर विशेष ध्यान देती हो । नहीं तो । फेवलछ कभी-कभी पढ़ लेती हूँ । पाठ न याद रहने पर स्कूल में सब लड़कियों के सामने अपभान सहना पडता है । मैंने तो अब पढ़ना छोड़ दिया दुलारी ! क्यों




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