अशांत | Ashant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
127
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विनोदशंकर व्यास - Vinod Shankar Vyas
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अशान्त
ल्लित---आप कब तक गाँव ঘহ আবী ?
चार दिन बाद जाऊँगा, और तुमको अपने साथ ले चहूँगा।
क्या अबकी ही बार ज्ञापके साथ चछनां होगा ?
हाँ, जितना मैं कहता हूँ, उत्तना करना होगा ।
ललित माँ के पास पहुँचा। कहा--माँ, चांचाजी के साथ
गाँव पर जाना होगा । कहते हैं, अबकी बार मेरे साथ ही चछना
होगा |
माँ ने कहा--ठीक तो है। बेटा, घर का काम देखना ही
चाहिये । तुम जानते हो कि तुम्हारी चाची से मेरी नहीं बनती;
नहीं तो में भी तुम्हारे साथ ही चकछतो। पर कोई चिन्ता नदीं,
तुम जाओ, कभी-कभी यहाँ आते रहना ।
माँ का उत्तर पाकर ऊछक्तित समझ गया कि अब जाना ही
पड़ेगा, दूसरा कोई उपाय नहीं है| दुलारी का साथ छोड़ना उसके
लिए सबसे कथन कार्य था। न वह' दुलारी को बिना देखे रह
सकता था और न ठुरारी उसके बिना 1 े
दुलारी से मिलने के लिए ललित गया था । चह अपने स्कूल की
पान्य पुस्तक पद् रही थी } ररित ने कहा--दुखरी! पद रह दो?
हाँ।
आज-कल पढाई पर विशेष ध्यान देती हो ।
नहीं तो । फेवलछ कभी-कभी पढ़ लेती हूँ । पाठ न याद रहने पर
स्कूल में सब लड़कियों के सामने अपभान सहना पडता है ।
मैंने तो अब पढ़ना छोड़ दिया दुलारी !
क्यों
User Reviews
No Reviews | Add Yours...