घन - आनंद | Ghan - Aanand
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about शंभु प्रसाद बहुगुना - Shanbhu Prasad Bahuguna
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धनानंद की जीवनी
श्रानन्दधन हरिदास श्रादि संतन वच सुनि सुनि)
धमारादि मे कही वहै नहि कदी सु शक श्ुनि।
हरिलीला सुनि प्रेमवश दग सजल बचन गदगद धरिय ।
श्रीसन्तत्य गुपाल की श्रवनेभक्तिनागर करिय ॥७।१। प° १५
२
( श्रथ सध्यम प्रेम उदाहरन महाराज श्री नागरीदास जी से )
छप्पय
जाति पाति कुल नेम राज तजि भो ब्रजबासी ।
मोहन मये सुख जाप राधका नाम उपासी।
करि अनुभवे पुनि वत्॑मान लीलेत भ्रकासी ।
तिहि प्रभाव वदि भाव लगन की भई उजासी ।
हरि रसानंद की प्राप्ति को प्रेसा पंथ प्रवेश तें ।
समय जन्य सब ज्ञान को जब भूले प्रेमाचेश ते । ४१
अंकुर रूप सुभयो प्रेम लघु जबे हीय सधि |
हरिगुन चर्चा कहत सुनत संचारी विधि सधि ।
ˆ, श्रानंदघन हरिदास आदि सो संत सभा सधि | &
भ्रकट भये ्रनुभाव सवैयाके ज्ञु यथा विधि।
ब्रज दाचन बास बसि वर भक्त तक्त शोभा सु लहि ।
श्रीमन्चरस्य गुपाल को चग नागर मध्यम भ्रम गहि ॥४२॥) घू० २३
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( श्रथ सतसंगति महिमा उदाहरण श्री नागरीदासरजीमे) `
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विप्ननि सो सुनि वेद् भागवत. श्रथं सुधारयो।
हरीदास हितमान कही सो ही अनुसारथो।
सुरलिदास अरु बसिदास सो समय गुजारयौ ।
श्रानंदघन को संग करत तन मन को नारयो,
नर्तित गुपाल सिलि जान यो सत्तसंगति नागर करिय ।
गो पद् समान सुख मान के भवसागर को ल्वहि तरिय 11६ ०४० २४
संवत् १६४७ (८सन् १८६० ई०) मे लिखी छप्पनभोगचन्द्रिका मे मागरीदास-
৯
हरिदास, आनंद्घन के सत्सग मे दिखाये गये है, और बतलाया गया है किं
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