हजारी प्रसाद द्विवेदी ग्रंथावली भाग 3 | Hazari Prasad Dwivedi Granthavali Prat - 3

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Hazari Prasad Dwivedi Granthavali   Prat - 3 by डॉ मुकुन्द द्विवेदी - Mukund Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पर. प्रम-कायानकों का साहित्य ह न््५ ७५० ०५ के नबनन्य प्रेस-कथानकों की गा एन को आधार | का रण है. कैथे न्फे हर भूत कहामियाँ--सुफी कवियों द्वारा मकैर्थीनक --सूफी मत का भारतवर्ष में प्रवेश--कुतवन--सूफी कवियों द्वारा व्यवहृत काव्यरूप--मंझन--मलिक मुहम्मद जायसी-पद्मावती की कथा--.जायसी का रहस्यवाद--पथावती का रूप--समासोक्ति पद्धति परोक्ष-सकेत के उत्साह का अतिरेक....उसमान--जाम कथि--कासिमशाह--अन्य सुफी कवि--अन्य सन्तों के प्रेम-कथानक--लौकिक प्रेम-कथानक । 8. रीतिकाव्य 413 1. रोतिग्रन्थों का सामान्य विवेचन भक्ति-काबध्य के व्यापक प्रभाव का काल--भक्ति भौर स्ूंगार भावना-- उज्य्वल-नीलमणि--रोविकाव्य--नायिका-भेद के भक्त कवि-कृपाराम की हित-तरंगिणी-केशवदास के रीति ग्रन्य--रुगण सनोभाव का काल---जाति-पाँति व्यवस्था का नया रूप--कवियों के प्रेरणास्रोत--मुलस्वर में मस्ती नही--नारी का चित्रण--अलंकार-शास्त्र का हिन्दी में प्रवेश-+रीति-कथवि की मनोवृत्ति--सस्कृत के अलकार- शास्त्र का प्रभाव-मसोौलिकता का अभाव--अलुकार- ग्रन्थों की संकुचित वृत्ति--अन्य आकर्षक विपय । 2. अ्मूख रीति प्रन्यकार भक्ति-्प्रेरणा का शैथिल्य-- चिस्तामणि--भूपण--मतिराम--जसवन्तरसिहं.. और भिषा रीदास--रीतिग्रन्थ कवियों का आवश्यक कर्सव्य- सा हो गया था--देव कवि-गद्य का प्रयोग--कुछ घसिद्ध आलंकारिक कवि- सब समय प्रसिद्धि का कारण रीि-प्रन्थ ही नहीं थे--पदमाकर--ग्वाल कवि और ्रतापसाहि । 3. रोत्तिकाल फे लोकप्रिय कवियों को विशेषता बिह्ारीलाल--शतक और सतसई-परम्परा--गाथा सप्तशत्ती भर बिहारी सतसई में अत्तर--परम्परा की विरासत--विहारी के साथ अन्य कवियों की तुलना का साहित्य--बिहारी सजग कलाकार थे--शब्दालकारों की योजना--अ्थालंकार की योजनों --विष्ा री की असफलता कहाँ है- बिहारी के अनुकर्ता--विहारो और देव--




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