जीवोद्धार | Jeevoddhar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवोयार १९
नावली भगवान् में प्रठारह दोष नही होते । उनक्रे जन्म, मरण,
नद्रा, भय, शोक, रोग, आदइचये, मोह, जरा (बढाया) सेद, प्रस्म्रेद,
गर्व, है।, रति, चिन्ता, राग, प्यास और भय ये प्रठारह शेप सर्वेज
भगवान में नही होते । वयोकि दोधो की उत्पत्ति का कारण मोहनीय
कर्म है और उन भगवान का मोहनीय फर्म सवा क्षय हो चुफा है ।
जब तक ये दोप रहते ऊे तब तक आत्मा परमात्मा नहीं हो
पाता । दोषों के अभाव में आत्मा शुद्ध हो कर परमात्मा बन जाता
1
€ (फकविवर प० बनारसीदास जो) माने हुए पाच प्रकार के जीव
कीन से है ?
१ डूधा, २. चू पा, ३ सू घा, ४ ऊघा, ५. घूधा।
जिसका कम-फकालिमा रहित श्रगम्प, श्रगाध और वचन মীন
उत्कृष्ट पद है, वे सिद्ध भगवान् इंचा जीव है ।
दोहा - जाकी परम दना विपे, करम-कलकः न हो 1
डघापझगम अगायच पद, वचन আসমালহ মাহ ॥1१॥
चू धा--जों मसार से विरक्त होकर प्रात्म-प्रनुभव का रस ग्रहण
करता है श्रौर श्री गुम के वचन बालकवत् दुग्ध के समान चूसता है,
बह चू था जीव है।
दोहा जो उदास है जगत सा, गहै परम रस प्रम।
सो चूधा भ्रुरुके वचन चू थघ॑ बालक जेम ॥२॥
सुधा--जों ग्रुद वाणी का रूचि पूर्वक श्रवण करता है, श्रौर
हृदय में दुष्टता (प्रन्यमाव) नही है अर्थात सरल परिणामी है, तेकित
श्रात्मस्वरूप को नहीं पहचानता ऐसा मंद कपायी जीव सू था है ।
दोदा जा सुवचन रुचि सो सुने, हिये दुप्टता नाहि।
परमारथ समर्भ नहि, सो सूंघा जग माहि ॥३॥)
अंघा-जिम सत् शास्त्र का उपदेश अच्छा नही लगता और
विकथाओं मे श्रत्यन्त रुचि है, विपयो का अभिलापी है तथा লী
ऋधों मानी तथा लोभी है ऐसा >घा कहलाता है ।
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