श्री स्वामी रामतीर्थ उनके सदुपदेश [भाग-३] | Shri Swami Ramtirth Unke Sdupdesh [Bhag-3]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राम परिचय, ` श उजञ्ज्यज्न मुखारीधन्द्‌ को, धस उंगली, निर्मय, धृष्ट, सबल शर तेजोमय मयुप्य को देखकर न पर्दैचान सकते थ] उनका चेदरा अब भर गया था, उसमें एक विशिष्ट तेज आ गया था और ईश्परीय आनन्द से उनके नेत्र अधेनिमीखित- से हो गये थे। इस शारीरिक एवं आत्मिक शक्ति वा निद्शन स्वरूप स्पामी राम ने अपने जीवन भर के परिध्रम श्रथोत्‌ अपने आप को दी संसार फे समक्त उपस्थित फियः। स्यामी राम की आत्मीयता अवेशपूरी थो । चह कभी कभी मीनौ वक मैन धारण कर खेते थे, मानों उनको कुछ कहना हीं। नहीं । वह परमानन्द में निमग्न रहते थे । कभी २ यकायक ज्वालामुखी पवेत की नाई उनकी हृदयार्नि भसक उठती थी और बहुत जल्दी ও अपने विचार प्रकट करन खग जाते थे। उनके लेखों भौर वक्‍त्ताओ सब में कोई न कोई हृदयप्राहफ एवं शान्तिप्रद बात अवश्य होती थी। जान पड़ता है कि जहां ये समाज में फुछ अधिक दिन तक सुक जाते थे कि उनको आत्मिफ अ्रशान्ति का अनुभव दोने संगता था । वड दस अशान्ति फ्लो दूर करने के लिये पर्धत के नि्जन प्रदेश! मे दौड़ जाया करते थे । बहा बदते हुए जख तथ। श्रानन्देमय श्राक्राश को देखकर उन शान्ति मिलती थी और वद वदां चद्धानौ पर धाम मे श्रुति वन्द्‌ यि दुष्य घणटों पड़े रहते थे । “स्वामी राम की अत्मीयता का एक ओर विशिष्ट लक्षण उनके भावो की गंभीरता थी । उनके नेषो से अगाध प्रेम ओर सत्यता णी घवल धारये बदती थीं ॥ उनका प्रेम नैसर्गिक भाव था। दन्दू और मुसत्मान दोनों की उन पर शक समान प्रीति थी | मिन्ग:* जातियों के मनुष्यों के स्वामी




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