सांप्रदायिक सदभाव की कहानियाँ | Sampradayik Sadbhav Ki Kahaniya

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Sampradayik Sadbhav Ki Kahaniya by गिरिराज शरण - Giriraj Sharan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शरणदाता / 17 ঢা) दिन छिपे के वक्‍त केवल एक बार खाना आता था। यो वह दो वक्‍त के लिए काफी होता था । उसी समय कोठरी और गैराज के लोटे भर दिए जाते थे। लाता था एक जवान लटका, जो स्पष्टटी नौकर नदी था, देविन्दरलाल ने अनुमान किया कि शेख साहव का लडका होगा। वह बोलता विलकुल नही था। देविन्दर- लाल ने पहले दिन पूछा था कि शहर का क्‍या हाल है ? तो उसने एक अजनबी दृष्टि से उन्हे देख लिया था । फिर पुछा कि अभी अमन हुआ या नहीं ? तो उसने नकारात्मक सिर हिला दिया था । और सब खरियत ? तो फिर सिर हिलाया था-- ছা देविन्दरलाल चाहते तो खाना दूसरे वक्‍त के लिए रख सकते थे, पर एक बार आता है तो एक वार ही खा लेना चाहिए, यह सोचकर वे डटकर खा लेते थे और बाकी बिलार को दे देते थे। विलार खूब हिल गया था, आकर गोद मे बैठ जाता और खाता रहता, फिर हड्डी-बड्डी लेकर आँगन मे कोने में वैठकर चवाता रहता या জম জারা লী देविन्दरलाल के पास जाकर घुरघुराने लगता । इस तरह शाम फट जाती थी। रात धनी हो आती थी । तब वे सो जाने थे। सुबह उठकर आँगन में कुछ वरजिश कर छेते थे किशरीर ठीक रहे, बावी दिन कोटरी में बैठे कभी फकरडो से खेलते, कभी आगन वी दीवार पर बैठने वाली गौरैया देखते, कभी दूर भे बबूतर की गुटरगूं सुनते, कभी सामने के कोने से शेखजी के घर के लोगो दी घातचीत भी सुन पड़ती । अलग-अलग आवाज़े वे पहचानने लगे थे, भर तीन-चार दिन मे ही वे घर के भीतर के जीवन और व्यक्तियों से परिचित हो गये थे। एक भारी-सी जनानी आवाज़ थी--शेख साहब की बीवी वी, धर की कोई और बुजुर्ग स्त्री। एक विनीत युवा स्वर था, जो प्रायः पहली आवाज की “जेवर! नी जैबू !” पुकार के उत्तर में बोलता था और इसलिए शेस साहब की सडवी जेबुन्निया दा स्वर था। दो मर्दानी आवाजे भी सुन पडती थी--एक तो आवबिद मियाँ की, जो शेख साहब का लड़का हुआ और जो याना लेकर आता है, पैर एक बडी भारी और चीकनी आवाज जो शेख साहब की आवाज़ है, इस आवाज को देविन्दरताल सुन तो सकते लेकिन इसकी बात के शब्दाकार कभी पहचान मे ने आते--दूर से तीखी आवाजो के बोल ही स्पप्ट समझ आते हैं! जैबू की आवाज से देविन्दरलाल का लगाव था। घर की युवती लडकी की आवाज़ थी, इस स्वाभाविक आकर्षण से नही, वह्‌ बिनीत थी, इसलिए मन-ही- मन वे जैदुन्निसा के बारे मे अपने ऊहापोह की रोमानी खिलवाड कहकर अपने को थोडा झिड़क भी लेते थे, पर अक्सर वे यह भी सोचते थे कि वया यह आवाज भी लोगों मे फिरकापरस्ती वग जहर भरती होगी ? सबती होगी ? शेख साहब पुलिस के किसी दफ्तर मे शायद हैड वलक हैं।




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