बालबोध जैनधर्म भाग - 4 | Balbodh Jaindharam Bhag 4
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
951 KB
कुल पष्ठ :
74
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१३ )
वाखोकरो चारों तरफसे उनका मुह दिखलाई देता है। कोई
उनपर उपमगे नहीं कर सकता आर अदयाका उनमेसे
बिलकुल अभाय हो जाता है | न आहार लेते हैं, न उनकी
पलके झपकती है, न उनके नाल और नाखून पते हैं, आर
न उनके शरीरकी परछाई पडती है। वे सम्पूर्ण निध्याओं
आर शास्त्रोऊे ज्ञाता हो जाते हैं | ६ कपलाहार (ग्रासयाला )
आहार न लेना, ७ यमस्तविव्रायोका खामीपना, ८ नसे
शोका न बढना, ९ नेत्रोंडी पलफें न झपकना, १० और
शरीरकी छाया न पडना, ये दश अतिणय केयलत्ञान होनेके
प्रगट
समय गट हैते द दैवत घौदह अअतिशय ।
देवरचित हैं चारदण, थद्धमागधी भाष ।
आपममाहीं मित्रता, निर्मलदिश नकारा ॥
होत फूलफल ऋतु सत्र, श्थिवी काचसमान ।
चरण कमल तक फमल दे, नभते जयजयाने ॥
मन्द् सुगध यारि पुनि, गधोदफकी इटि ।
भूमिविप् कष्टक नही, दर्पमयी सय ख्षटि ॥
धर्मयक्र आगे रहे, पुनि रसुमगक मार ।
अतिशय श्रीअरहते, ये चातीस अकार ॥
१ भगयानकी अद्ध मागधी भाषाका होना, २ समस्त
जीयेंमे परस्पर मित्रताका होना, ३ दिशाओंफ़ा निर्मल होना,
व शाप + 7-7 ्य-+- 5 1.०
মাথা | २ दिशा । है का, दर्पेथ 1 ४ शावाशसे | £ दाणयी।
६ ह्वा । ७ कटि, कहर | ८ आठ 1
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