स्वामी शंकरचार्य जी | Swami Shankarachary Ji

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Swami Shankarachary Ji by हरिमंगल मिश्र - Harimangal Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ उपोद्घात 'नाई' बड़े भांचीन ऋषि हैं। उनके समय का कुछ पता नहीं | योगशारत्र के प्रणंता भगवान पतजझलि कदाचित्‌ वही हैं जिनने व्याकरण का महाभाष्य रखा !ये पटना के शुद्ध चंशी राजा पुष्यमित्र ( खीष्ट से प्राय: पोने दो सौ वर्ष पूर्व ) के समय में विद्यमान थे । तत्वों को संख्या ता पतश्ललिने मी कपिल के साख्यायुसार मानी है पर इेश्वर सिद्धि की युक्तियाँ भी इन्होंने लिखी हैँ । योग का अथे चित्तवृत्ति का सांसारिक पदार्थों की ओर से रोक के इश्वर को ओर -छगाना है। योग में चित्त के णक्ाग्न करने की विधि और इंश्वर प्राप्ति का मार्ग बताया है । न्याय, वैशेषिक, पुं ओर उत्तर -मी मसा, सख्यि तथा योग के छुआओ्रों ग्रन्थ हिन्दुओं के बीच षड- दर्शन वा घट शास्त्र के नाम से प्रसिद्ध हैं। शर्म॑ प्रधान इतिहास श्रन्थ रामायण और महाभारत हैं । 'शामायण को बाल्मीकि ऋषि ने प्रायः रामायण में उल्लिखित 'घटना के समान समय में वा डसके तनिक पोछे बनाया ) रामायण इतिहास ग्रन्थ भी है और काब्य भी । इसके पहिले संस्कृत भाषा में कोई काव्य नहीं रचा गया अतएव इसका नाम आदि काव्य भी है । रामायण में अयोध्या के महाराज दशरथ के पुत्र श्रीरामचन्द्र जी का जीवन चरित विस्तार पूवेंक्त वर्णन किया गया है | इस ग्रन्थ में ७ काएड और चौबीस सहस्य श्लोक है | यदि महाभारत युद्ध का समय स्ीष्ट से १४२४ वर्ष पूर्व मान लिया जाबे तो उस समय में वतेमान राज़ा वृहद्धल से प्राय: ३० पीढ़ी पूर्व के पुरुष राजा 'शमचन्द्र जी का समय प्रतिपीढ़ा केवड २० वषे ही का 'खेखा लगाने से स ईस्वी से प्रायः २०२४ वर्षं पूर्वं ठहरता




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