हिन्दी में विज्ञान लेखन - कुछ समस्याएँ | Hindi Men Vigyan Lekhan - Kuchh Samasyaen
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका । ७
इन १६ विज्ञान परिषदों में से उत्तर प्रदेश में ७, महाराष्ट्र में २, राज-
स्थान में ३, दक्षिण भारत में २, पंजाब में १, दिल्ली में १ तथा सुदूर स्थानों
में २ आयोजित हुईं। इन परिषदों में जिन विभिन्न विज्ञान विषयों पर
चर्चा की गयी वे हैं--भूगोल, आयुर्वेद, ज्योतिष, गणित तथा सामान्य
वैज्ञानिक समस्याएं । इन भाषणों में देश में २० वर्षो मे (१६३१-१६५०)
विज्ञान के विविध क्षेत्रों में जो प्रगति हुई और हमने जो संकल्प किये उनका
लेखा-जोखा प्राप्त होता है। हिन्दी के वैज्ञानिक लेखन का इतिहास लिखते
समय यह सामग्री महत्वपूर्ण प्रिद्ध होगी ।
ये १६ भाषण १४ विभिन्न व्यक्तियों ने दिये जिनमें डॉ० गोरखप्रसाद
तथा डॉ० सत्यप्रकाश को दो-दो बार भाषण देने का गौरव प्राप्त हुआ ।
सम्मेलन की विज्ञाव परिषदों के सभापतियों का चुनाव किस प्रकार होता था
इसकी एक झलक कविराज जी के भाषण से प्राप्त होती है किन्तु इतना तो
निश्चित है कि इसके लिए हिन्दी-सेवा के अतिरिक्त नेतृत्व भी प्रमुख कसौटी
थी । इसका प्रत्यक्ष प्रमाण विज्ञान परिषद् के प्रथम सभापति हीरालाल खन्ना
का चुनाव था। उनका शिक्षण के क्षेत्र में अत्यधिक दबदबा था, वे अच्छे
शिक्षक थे किन्तु साथ ही, राजनीतिक नेताओं से भी उनका सम्पर्क था।
विज्ञान परिषद्, प्रयाग के लिए उनकी सेवाएँ अभूतपूर्व थीं। इसी प्रकार
पं० रामनारायण मिश्र का चुनेव भी। मिश्र जी अपती सादगी के लिए
विख्यात थे । जीवनपर्यन्त वे भगोल की सेवा में तत्पर रहै। किन्तु सूर्य-
नारायण व्यास, डॉ० गोरखप्रसाद, डॉ> सत्यप्रकाश, डॉ० ब्रजमोहन, प्रो०
फूलदेवसहाय वर्मा या डॉ० श्रीरंजन का चुनाव नि:सन्देह उतकी विद्वत्ता, उनकी
लेखन-क्षमता तथा प्रसिद्धि के कारण ही हुआ होगा।
सम्मेलन को विज्ञान परिषदों की एक विशेषता यह भी रही है कि
सम्मेलन ने आयुर्वेद विषय को सम्मेलन-परीक्षाओं में सम्मिलित कर रखा
था फलत: कई परिषदों का सभापति आयुर्वेद के विद्वानों को बनाया गया ।
सर्वप्रथम पं० जगन्नाथप्रसाद शुक्ल आयुर्वेद पंचानन को यहु अवसर प्रदान
किया गया । उसके पश्चात् श्री भास्कर गोविन्द घाणेकर तथा कविराज
प्रताप पिह को सभापति बनाया गया। केवल चन्द्रशेखर वाजपेयी ऐसे
व्यक्ति थे जिनकी रुचि विज्ञान के प्रति तो थी किन्तु वे साहित्यकार थे ।
मैंने विभिन्न सभापतियों के भाषणों के अतिरिक्त उनके जीवन तथा
कृतित्व के सम्बन्ध में संक्षिप्त परिचय भी यथास्थान संलग्न कर दिये गये हैं
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