धरकट सूम | Dharakat Soom
श्रेणी : नाटक/ Drama, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
69
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१७
धरकट सूम)
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बुद्ध -(छिपकर) बेशक ! दकारः सुन कर दहमं জুই न हुआ,
दिल न दहला, दुम दबाकर दूर न भागे, तो फिर
तारीफः क्या ?
सजन--वाह ! अर्थशासत्रकी ऐसी बारीक वातोंकों तो कोई
1८०7०एए का प्रसिद्ध {९3577 भी समभ्छा नहीं
सकता !
बुद्ध --बेशक,भला पढ़ा-लिखा आदमी भी कहीं इतनी बड़ी
वारीकीको परख सकता है ? हगगिज नहीं, मुमकिन नहीं,
यह पहुँच तो स्ोेठजीकी तरह अनपढ़ अक्लमन्दकी ही
सूकका काम है!
सेट~-अजी पोफो सरको इन वातोंका क्या पता है !
पढ़ना-लिखना तो उसके लिये जरूरों है जो बेवकूफ
हो ! अक्लमन्द तो खुद पढ़े-लिखे हई हैं। उन्हें खोपड़ी
खखोरन खाँ बननेस क्या ग़रज़ ?
बुद्ध, आप ही आप ) बेशक, खुद अक्लमन्द् हो तो ऐसा हो
( संठकी ओर इशारा करके ) जो गर्महीमें गीता पढ़
चका हो |
सजन--आपतो बिना पढ़े-लिखे ही कितने काव्यतीर्थोंकोी छका
सकते हैं। चाहे कोई तेरह तीर्थ क्यों न हो आपके
सिद्धान्तोंका रहस्य समझना उसके लिये भी रेदी
खीर है ।
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