धरकट सूम | Dharakat Soom

Dharakat Soom by हरद्वार प्रसाद - Hardwar Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ धरकट सूम) 9५००9 बुद्ध -(छिपकर) बेशक ! दकारः सुन कर दहमं জুই न हुआ, दिल न दहला, दुम दबाकर दूर न भागे, तो फिर तारीफः क्या ? सजन--वाह ! अर्थशासत्रकी ऐसी बारीक वातोंकों तो कोई 1८०7०एए का प्रसिद्ध {९3577 भी समभ्छा नहीं सकता ! बुद्ध --बेशक,भला पढ़ा-लिखा आदमी भी कहीं इतनी बड़ी वारीकीको परख सकता है ? हगगिज नहीं, मुमकिन नहीं, यह पहुँच तो स्ोेठजीकी तरह अनपढ़ अक्लमन्दकी ही सूकका काम है! सेट~-अजी पोफो सरको इन वातोंका क्‍या पता है ! पढ़ना-लिखना तो उसके लिये जरूरों है जो बेवकूफ हो ! अक्लमन्द तो खुद पढ़े-लिखे हई हैं। उन्हें खोपड़ी खखोरन खाँ बननेस क्या ग़रज़ ? बुद्ध, आप ही आप ) बेशक, खुद अक्लमन्द्‌ हो तो ऐसा हो ( संठकी ओर इशारा करके ) जो गर्महीमें गीता पढ़ चका हो | सजन--आपतो बिना पढ़े-लिखे ही कितने काव्यतीर्थोंकोी छका सकते हैं। चाहे कोई तेरह तीर्थ क्‍यों न हो आपके सिद्धान्तोंका रहस्य समझना उसके लिये भी रेदी खीर है ।




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