जनपदीय भाषाओ का साहित्य | Janpadeey Bhashao Ka Sahitya

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Janpadeey Bhashao Ka Sahitya by रमण शान्डिल्य - Raman Shandily

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १४ | से अंगिका की क्वृतियों का प्रकाशन होने लगा है। अकेले शेखर प्रकाशन ने ही अद्यतन दस पुस्तकों का प्रकाशन कर दिया है। यह बड़े सन्‍्तोप की वात है अगिका के विकास में हिन्दी के धुरन्धर विद्वान स्वर्गीय श्री लक्ष्मीनारायण जी सुधांशु और राष्ट्र-कवि स्व० रामधारीसिह दिनकर का सहयोग एवं आशीर्वाद प्राप्त रहा धा! श्री नरेण पाण्डेय चकोर ने अपने लेख “बगिका के साहित्यकार' में लिख! है कि बौद्ध ग्रन्थ ललित विस्तर' में अंग-लिपि का लिपियों में चौथे स्थान पर उल्लेख मिलता है। अगिका में बिहुला लोकगाथा काव्य तो अगिका का रस स्रोत ही है और अत्यन्त लोकप्रिय है। बिहुला काव्य की भाँति और भी वहुत-सा काव्य कागज पर तो नही अंगिका भापियोके कण्ठमे विराजमान है और अभगिकाके लोक सादित्यकौ समृद्धिका मौन साक्ष्य प्रस्तुते कर रहा है। चकोर जी के लेख से अंगिका के क्षेत्र की समस्त साहित्यिक गतिविधियों का सम्यक्‌ बोध हो जाता है। वज्जिका लोकगीतो में चारिचत्रिक आदर्श शीर्षक लेख श्रीमती विनोदिनी शर्मा लिखित है। यह बज्जिका के लोकगीतों से सम्बन्धित है । इसमें लोकगीतों के वस्तुतत्व तथा रसतत्व का विश्लेषण बड़े सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया गया है । वज्जिका कान्य की प्रेपणीयता पर निर्मल मिलिन्द ने अपने लेख मे सोदाहरण प्रकाश डाला है। श्रीमिलिन्द ने वज्जिका के क्षेत्र तथा उसमे प्रचलित पत्र-पत्निक्राओं का भी सविस्तार उल्लेख किया है जो पठनीय है । श्री रमण शांडिल्य लिखित 'वज्जिका के रचनाकार” शीएेक लेख मे उन सभी साहित्यकारो, कवियो, लेखकों का नामोल्लेख है जिनकी बज्जिका के लिये जीवन में कुछ न कुछ देन रही है। लेखको के जीवन का सक्षित्त परिचय उनके कृतित्व के नमूनों सहित प्रस्तुत किया गया है। 'हिन्दी और उसकी वोलियाँ' णीपषंक लेख मे डा० सियाराम तिवारी ने विदेशी विद्वानों ओर खास तौर से ग्रियर्सस महोदय की मान्यताथो का खण्डन करते हुए बड़ी तकंसगत शैली में सिद्ध कर दिया है कि लोकभापाएँ हिन्दी की बोलियां हीट अन्य कुछ नही । उन्होंने बोलियो के असझ्य शब्दों से हिन्दी के भण्डार को समृद्ध करने की बात भी कही ই ॥ बोलियो का व्याकरण उनका निजी ह उसको हिन्दी में समाहित करने की कोई आवश्यकता नहीं । किसी भी वोली के व्याकरण में एक सौदर्य है; एक मिठास है जो उसी के साथ फवता है । ডি स्वकिरण ने अपने लेख में भोजपुरी भापा और उसके साहित्य पर इतने समग्र रूप में जानकारी प्रस्तुत की है कि लेख शोधार्थी के लिए भी




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