हिन्दी विश्वकोष | Hindi Vishvakosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाँग--भांड इस उक्षसे जगतके लिप हितकर दो चोजे' उस्पन्म | होतो हैं। थे दोनों हो मनुष्यके बड़ कामकी चीज़ हैं। | जरा ओर पसे जो श्रांजा ओर सिद्धि नामक मादक दष्य होता ह, वह मादकता दोषसे दुष्ट ঘীলঘহ লী. সম্বল বাঘা साधारणके लिप विशेष उपकारी कहा गया है । सुश्रत, भावप्रकाश आदि वैद्यक प्रन्थोंमें भङ्कके गुण लिखे हैं। भज्जा और सिद्ध देखो । हिन्दूधमंके प्राचोन वेदादि प्रन्थोंमें भो भांगका उल्लेख पाया जाता है | 'अड्भभूत कहा गया है। यज्ञमें ऋषीगण सोमके बदले इसे हो पान करते थे। इसको छालसे सन नामकी पक तरहकी ररूसो बनतो है। सुप्राचीन वे दिकयुगमें उसका ' ' भांज़ (हि० स्त्री०) १ किसी पादर्थकों मोड़ने या तह करने- भो व्यवद्दार था । ऋग्थेदान्तगंत कौशिकी ब्राह्मणका भङ्गाजाल' ओर 'भड़शयन' शब्द इस बातका परिचय दे रहा है। उक्त प्रन्थमें भड़ शब्द स्थीलिड और पुलिड्ू- मे व्यवहृत हुमा रै, इससे भी दो प्रकारके वरक्षोंका अस्तित्व सूचित होतः है | पुराणादिमे शिचक्रे भङ्कुपानसे रक्तनेव होनेका उल्लेख है ; दुगापूजाके विज्ञया-वरणके समय दुगादेवीके मुल- में भांग और पान दिया जाता है। यात्राकालमें सिद्धि प्रदान करती है, इससे इसका दूसरा नाम सिद्धि है। बड़ालमें विजयादशमीके दिन इसे दुर्गांकी प्रसादी पवित्र प्रवय मान कर सक्साधारण लोग पानीय रूपमें इसका व्यवहार करते हैं। उस दिन हिन्दूमात्र ही घरमें समा- বাল অল্থু লীহ कुदुम्वियोंकी सिद्धि और मिष्ठान्न भोजन करा कर शुभालिडून करते हैं। पहले गांशा ओर चरस शबदमें उसके सेवानादिका विषय लिखा आ खुका है। भांग (सिद्धि) अनेक मसालों के साथ घोंट छान कर पीई जाती है। इसके सेचनसे ` शोणित मौर शरोर उष्टा, मख्तिष्क बिकृत, मन पकांग्र, दुः।खका हास और स्फूतिक्ता विकाश आदि मादकता . लक्षणोंका क्रमशः विकाश शेता है। मालाचुसार सेवम करनेसे इससे पिशादिदोष नष्ट होते और उदराग्निको वृद्धि होती है। साधारणतः काली मिथ, सॉफ, छोटी इलायसी - छबडु, जायजी, आयफल, पोस्ता, गुाबके फूल, लोराके ऋग्वेद और अथववेदमें हसे सोमके भांजना ( हि० क्रि०) १ तह करना, मोड़ना । ९ बीज, खर वृजाके बीज आदिके साथ भांग घोरी जाती है। खुयह थोड़ी भागकों पानोमें भिगो कर, शामकों करोब ४ बजे उसे अच्छी तरह मल कर धोना चाहिए। फिर उसे उपथु क्त मसालोंके साथ सिल बटिया या परथरके इ्मामदस्तामें नोमके धोरेसे घोरिना चाहिये ओर उसे कच्चा दूध, मिसरी, नारियलका पानी आदि मिला कर सेवन करना चाहिए। उत्तर-पश्चिम प्रास्तमें मुसलमानों और हिन्दुओंमें तथा मथुरा वृन्दाबनमें चौथे आभादि शजञ- वासियोंमें काफो भांगका सेवन होता है, तथा राज़पूलाना ओरबं गालियोमि भो भांग पीनेका प्रचार है। भांगरा ( हि? खत्री० ) किसो धातु आदिकी गद या छोटे छोटे कण। का भाव अथवा क्रिया । २ भांजने या घुमानेकी क्रिया या भाव । ३ वह धन जो रुपया, नोट आदि भुनानेकरे बदलेमें दिया ज्ञाय, भुनाई | ४ तानेफा सत । २ মুন आदि घुमाना । ३ दो या कई लड़ोंको एकमें मिला कर बटना | भंजा ( हिं० 4१० ) भानजा देखो । भांजो ( हिं० खी० ) वह बात जो किसोके होते हुए काम- में बाधा डालनेके लिये कहो ज्ञाय, शिकायत | লাল ( हिं० पु० ) १ भाट देखो । २ देशो छींटोंको छपाएमें कई रंगोमेंसे केवल काले रंगकी छपाई जो प्रायः पहले होती है। মাতা (ছি০ पु० ) गन देखो | भांड ( हि० पु०) १ परिहासक, वह जो खूब हंसा सक्ता हो । | २ परिहासं-रसिक सम्प्रदाय विशेष। राजा भौर खञ्भ्रान्त लोर्गोको समामे नाना प्रकार यङ्खमङ्कखा भथत्रा सुरुलित षाकषय विन्यास घा हसी-मजाक জাহা उपस्थित व्यक्तियोंका मनोरखन करना हो इनका प्रधांग कर्म है। मुसलमान लोग इनके तमाशेको नकल' कहते है । प्राचीन सस्त नारकोके राजादुखर यिद्वक वत मान भांडोंके अनुरूप थे। परंतु भाड़ोंसे विवृषकके कायमें बहुत प्रभेद देखनेमें आता है । प्राजीन हिंयू राजाशोंके




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