भूमिजा | Bhoomija

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Bhoomija by स्वामी सर्वानन्द सरस्वती - Swami Sarvanand Sarsvati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कञ्चुकी लचमण कञ्चुकी लक्ष्मण कञ्चुकी लक्ष्मण भूमिजा २१ | बातायनके कपाठ हवाके वेगसे खुल जाते हैँ । कञ्चुकी पास जाकर बन्द करता है। | ; [ बहींसे | कञ्चुकीका बूढ़ा शरीर आदर और सम्मानका यह बोझ नहीं सह सकेगा लक्ष्मण !***उस दिन रामभद्र भी तो यही कटा था--'आर्य कञ्चुकी, स्वर्गीय महाराज ददारथके समयसे रामभद्र कहते आये हो, वही कहो । : ठीक ही कहा था भैय्याने 1* मुनि अष्टावक्रको भेय्याने क्या वचन दिया था ? १ ~ ४५६ : भगवान्‌ वसिष्ठने आदेश भेजा था--र[जाका धन उसका निर्मल यश ह । प्रजारजन उसका एकमात्र कत्तंव्य है। रामभद्रने यह कॉटोंका ताज पहना है तो प्रजाकी परीक्षामे उन्हें खरा उतरना होगा । : और भैया रामने उत्तरमें क्या कहा आर्य ? : रघुकुलकी परम्परा क्या कहती है लक्ष्मण ? सूर्यवशकी सन्तानसे किस उत्तरकी आशा रखते हो ? रामभद्र भगवान्‌ वसिष्ठकों वचन दिया था--प्रजाकी सेवाके लिए अपने हृदयकी दया, ममता, क्षमा, सब कुछ वह बलिदान कर देगे। प्राणोसे प्रिय जानकीका परित्याग भी*** : [ जल्दीसे चौकीसे उठकर ] आर्यं कञ्चुकी, मातेश्वरी सीता रामकी सम्पत्ति नहीं है । लक्ष्मणके जीते जी यह अन्याय नहीं होगा । राम अपनी घन-सम्पदा, राजमुकुट, यह राजभवन, अपना सर्वस्व, सब कुछ प्रजाके पागलपनपर बलिदान करदे, लक्ष्मण उनके इस अधिकारको चुनौती नही देगा । किन्तु देवी सीताका निष्कलंक सतीत्व प्रजाके अपवादसे लाछित हो, इतना बडा अपराध**“लोग चाहते




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