भूमिजा | Bhoomija
श्रेणी : नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
87
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कञ्चुकी
लचमण
कञ्चुकी
लक्ष्मण
कञ्चुकी
लक्ष्मण
भूमिजा २१
| बातायनके कपाठ हवाके वेगसे खुल जाते हैँ । कञ्चुकी
पास जाकर बन्द करता है। |
; [ बहींसे | कञ्चुकीका बूढ़ा शरीर आदर और सम्मानका
यह बोझ नहीं सह सकेगा लक्ष्मण !***उस दिन रामभद्र
भी तो यही कटा था--'आर्य कञ्चुकी, स्वर्गीय महाराज
ददारथके समयसे रामभद्र कहते आये हो, वही कहो ।
: ठीक ही कहा था भैय्याने 1* मुनि अष्टावक्रको भेय्याने क्या
वचन दिया था ?
१ ~ ४५६
: भगवान् वसिष्ठने आदेश भेजा था--र[जाका धन उसका
निर्मल यश ह । प्रजारजन उसका एकमात्र कत्तंव्य है।
रामभद्रने यह कॉटोंका ताज पहना है तो प्रजाकी परीक्षामे
उन्हें खरा उतरना होगा ।
: और भैया रामने उत्तरमें क्या कहा आर्य ?
: रघुकुलकी परम्परा क्या कहती है लक्ष्मण ? सूर्यवशकी
सन्तानसे किस उत्तरकी आशा रखते हो ? रामभद्र
भगवान् वसिष्ठकों वचन दिया था--प्रजाकी सेवाके लिए
अपने हृदयकी दया, ममता, क्षमा, सब कुछ वह बलिदान
कर देगे। प्राणोसे प्रिय जानकीका परित्याग भी***
: [ जल्दीसे चौकीसे उठकर ] आर्यं कञ्चुकी, मातेश्वरी
सीता रामकी सम्पत्ति नहीं है । लक्ष्मणके जीते जी यह
अन्याय नहीं होगा । राम अपनी घन-सम्पदा, राजमुकुट,
यह राजभवन, अपना सर्वस्व, सब कुछ प्रजाके पागलपनपर
बलिदान करदे, लक्ष्मण उनके इस अधिकारको चुनौती
नही देगा । किन्तु देवी सीताका निष्कलंक सतीत्व प्रजाके
अपवादसे लाछित हो, इतना बडा अपराध**“लोग चाहते
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