घेरा | Ghera

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Ghera by बदल सरकार- Badal Sarkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सोमा सुमन सोमा सुमन सुमन सुमन सुमन सोमा सुमन : घेरा | १६ वहाँ तो बराबर ही जाती हूँ, कपड़े धोने । : हॉह्रॉ, बराबर ही तो जाती हो, कपड़े धोने | और कुछ करने नही न ? : कहना क्या चाहते हो ? : झरना के उस ओर हुस्नहीना की झाड़ी हैं न ? सोमा : हा, है । तो उससे क्या ? : उसकी आड्‌ मे बैठकर बहुत कष देखा जा सकता है | सोमा : सुमन : सोमा : “बहुत कुछ” माने ? कपड़े धोना. और.. और बहुत कुछ । “और बहुत कुछ” क्या ? कभी कभी गर्मी के दिनों मे पानी में थोड़ा पेर डुबाकर बेठ जाती हूँ, और না? (कपडा थोडा सा उठाकर दिखलाती है) : थोड़ा नही, और ज्यादा । सोमा : बिलकुल नही | बहुत हुआ तो इतना । (और थोडा उठाती है) : थोड़ा और । : छि. छि तुम्हें शर्म नही आती ? झाड़ी की आड़ मे छिपकर तुम लड़कियों का पानी मे पेर डुबाना देखते हो । लगता है थार-दोस्तो को भी साथ लेकर आया जाता है ? (दौडकर महल के भीतर चली जाती है) (चोट खाकर) बिलकूल नही । यार दोस्तों को लेकर मे कभी- (नोलते-बोलते वहं भी भीतर जाता है । विपुल वर्म का प्रवेश, साथ में कुछ सिपाही हैं। दरवाजे के दोनो सिपाही और साथ में आये सिपाहियों से फुसफूसाकर कुछ




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