शिक्षा प्रशासन एवं पर्यवेक्षण | Shiksha Prashasan Awam Paryawekshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about प्रभुदयालु अग्निहोत्री - Prabhu Dyalu Agnihotri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० शिक्षा-प्रशासन एवं पर्यवेक्षण
विभिन्न स्तरों पर शिक्षा की व्यवस्था, एक ही स्तर पर विभिन्न योग्यता वालों को विभिन्न
कार्यों में संलग्न करना, निर्देशन देना तथा आवश्यकतानुसार शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत
व्यक्तियों की गतिविधियों तथा कार्यो को समन्वित करना सम्मिलित है। शिक्षा-प्रशासन के
ये कार्य सदियों के अभ्यास के बाद विकसित हुए हैँ । इनमें से शिक्षा-प्रशासन के अनेक कायं
अभ्यास तथा भूल के नियम के अनुसार अनुभव द्वारा विकसित हुए हैं। पिछले १०० वर्षों
से तो शिक्षा-प्रशासन का विधिवत् अध्ययन प्रारम्भ हो गया है तथा इसे एक अनुशासन के
रूप में मान्य किया जाने लगा है।
शिक्षा का संबंध जीवन से रहता है तथा उसमें मानवीय तथा भौतिक दोनों पक्ष
शामिल हैं । इसीलिए शिक्षा-प्रशासन में शिक्षा के मानवीय पक्ष जेसे शिक्षक, वालक, पालक
तथा भौतिक पक्ष जेसे शाला-इमारत, वित्त, खेल के मंदान, साज-सज्जा आदि दोनों का
समावेश होता है। शिक्षा-प्रशासन शिक्षा के मानवीय तथा भौतिक साधनों की समुचित
व्यवस्था से संबंधित रहता है । इन दोनों प्रकार के साधनों के अतिरिक्त समाज के विचार,
आदर्श, आवश्यकताएँ, शिक्षण-प्रक्रिया में शोध या अनुभव के आधार पर विकास-पाटयक्रम
आदि का अत्यन्त अधिक प्रभाव शिक्षा पर पड़ता है। अतः शिक्षा-प्रशासन का कार्य इन सभी
मे समन्वय स्थापित करना भी रहता है ।
शिक्षा-प्रशासन--कला
ग्टेडन महोदय का कथन है कि कला से मानवीय कौशल का बोध होता है। इसमें
यद्यपि ज्ञान अपेक्षित रहता है तथापि इसमे सिद्धान्त की अपेक्षा अभ्यास पर अधिक जोर
रहता है ।”* शिक्षा-प्रशासन इस दृष्टि से अपने सार्वजनिक कार्यों को मस्तिष्क तथा प्राप्त
साधनों से सम्पन्न करता है ¦ वह शिक्षा से संबंधित व्यक्तियों को निदंश देता है तथा शिक्षण-
प्रक्रिया को अच्छी तरह पूणं करने की प्रेरणा देता ই । 2५87८ 44050400 में व्हाइट
महोदय ने व्यक्त किया ই कि “সঙ্গাজল নী कला किसी ध्येय या उद्देश्य की प्राप्ति हेतु
निर्देशन, सहयोग तथा नियंत्रण है ।”* सामान्य प्रशासन के अनुरूप शिक्षा-प्रशासन में भी
कला की आवश्यकता होती है । शिक्षा-प्रशासन में भी बुद्धिमानी तथा चतुराई से निर्देशन,
सहयोग तथा नियंत्रण आदि करना आवश्यक रहता है। शिक्षा-प्रशासन में दक्ष होने के लिए '
चातुर्य, अभ्यास तथा परिश्रम की आवश्यकता होती है। शिक्षा-प्रशासन की क्रिया गतिशील
भी है । जंसे-जेसे साधनों, अभ्यास तथा ज्ञान का अधिक विकास होता जाता है, वसे-बसे
शिक्षा-प्रशासन मे भी निपुणता का विकास होता जाता है । कुशल शिक्षा-प्रशासन अपनी
परिवर्तित स्थितियों तथा अनुभवों से लाभान्वित होने के लिए तत्पर रहता है तभा अन्य
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