हिंदी पद्य रचना | Hindii Padhya Rachanaa

Hindii Padhya Rachanaa by रामनरेश त्रिपाठी - Ramnaresh Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ हिन्दी-पद्म-रचना प्रत्यक चरण में गणों को गिनती प्रथम अन्ञर से की जातो है। अन्त में जो दो या एक अक्षर बच जाते हैं, वे लघु हुये तो लघु चौर गुर हये तो गुरु मान लिये जाते हैं । दग्धादर पद्म म॑ अक्षरों शुभाशुभ पर भी ध्यान रखने का नियम है । स्वर सभी शुभ माने गये है । व्यञ्ञनों में शुभ और अशुभ माति माने गये हे- शुभ--क, ख, ग, घ, च, छ, ज, त, द, थ, न, य, श, स, क्ष । अग्युम-उ,, के, भ, ट, 5, ड, ढ, ण, थ, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, प, ह । अशुभ अक्षरों में भी क, ह, र, भ ओर पता अत्यन्त दृषित हें। ये दुग्धात्षर कहलाते हैं। पद्म के।आदि में इनका होना बड़ा दोष है । हाँ, देवता-सम्वन्धी किसी शब्द का प्रारम्भ इन्हीं अक्तरों से हा तो वह अशुभ नहीं समझा जाता ओर दोध अक्षर काई मो द्ग्धा्नर नहीं माना जाता । तक हिन्दी-कविता में तुक की प्रधानता उसक प्रारम्भ-काल ही से चली आतो है । बहुत ही कम ऐस उदाहरण मिलते हैं, जिनमें तुका का कुष्टं ख्याल न क्रिया गया हो । संत-कवियां ने कहीं-कहीं नाम-मात्र के बेतुके पद भी कहे हैं| उनमें से दरिया साहब का एक पद नोचे लिखा जाता है-- अबके बार बकस मारे साहिब तुम लायक सब जोग हे। गुनह बकसिहों सब श्रम नसिहों रखहो अपने पास हे। अलछे बिरिछ्व तर ले बेठहों तहवाँ धूप न छाँह है। चाँद न सुरुज दिवस नहिं त्वां नहिं निसु हात बिहान हे ।




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