धर्मवीर भारती का उपन्यास साहित्य | Dharmaveer Bharati Ka Upanyas Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५ ) में कही गई बातो के सदर्म से न जुड कर श्चपते श्रपने गहन क्षणौ मे स्थिर रहती हैं। च किन्तु उन्हे पूरा पठने के वाद एक काल्यात्मक सश्लिष्टता प्राप्त होती है । उपन्यास के क्षेत्र मे 'चित्रलेखा” एक श्राकस्मिक दैवी घटना धरी, क्योकि वास्तविक रूप से यह उस लेखक की रचना नही थी जिसने अपने अपने खिलौने, 'ठेढे मेढे रास्ते, 'भूले बिसरे चित्र' श्रादि का निर्माण किया था ! ये सभी उपन्यास भ्रियमाणा रोगी की तरह बहके हुए थे पर 'चित्रलेखा' एकदम अस्वाभाविक रूप से असाधारण रचना बन गई और यह समस्या हो गई कि इस उपन्यास को कौव सी श्रेणी मे रखा जाये । 'चित्रलेखा' ने मात्र मानव को समाज की पृष्ठभूमि का रूप प्रदान किया और प्रेम को रोमान्स की भूमि पर एक साधु और सामन्त की कसौटी बनाकर पाप और पुण्य का, धर्म की सत्ता का उद्धाठन किया । 'चित्रलेखा' उस प्रकार का कथा-प्रयोग था जो युग से एक प्रश्न पूछता था कि समय और व्यक्ति मे विराट्‌ कौन है? चित्रलेखा' एक दैवी घटना थी, उसी के श्रासपास एकं नवीन रचना का जन्म हरा, 'सुनीता' जो एक एतिहासिक दुर्घटना थौ । ऐतिहासिक दुर्घटना हस कारण फि “सुनीताः का उपन्यासकार सहसा ही एक एतिहासिक दृष्टि दे बेठा जो सभवतः उस समय उसके पास नही थी जब उसने लिखने के पूवं लेखनी उठाई थी । श्रपनी असाधारण प्रतिभा-क्षमता द्वारा वह अपने से इस प्रकार खेलता-कूदता नही था जिस प्रकार अज्ञेय”/ अपने निजी रूप का शैतान भी अपने पात्र के हृदय में वैखा देता है । जनेन्द्र पत्रो को सामाजिक यथार्थं की साथंकतात्तो नही ही प्रदान करते, उनके कार्यो श्रौर व्यवहारो को विश्वस्रनीयता भी नही दे पाति । इतके पात्र देखने में बहुत सहज होते हैं किन्तु वास्तव मे वे विशेष प्रकार की व्यक्तिवादी भूख और लेखक के गूढ श्रारोपित दर्शेन से परिचालित होते हँ । | वे श्रपनि स्थितियों मे सदा वह्‌ रास्ता चुनते हैं जो सहज नही होता और जिसे सामाजिक चेतता और स्वास्थ्य चाला कोई दूसरा व्यक्ति नही चुनता । इसलिए जैनेन्द्र के पात्र सामाजिक विसगति से फूटते नही, व्यक्ति की विसगत्तियो मे जीते सामाजिक परिवेश से बेखबर रहते हैं । एक और उपन्यास साहित्य के क्षेत्र मे अवत्तरित हुआ--शिवर एक जीवनी' | शेखर एक सच्चा मनुष्य है, वह महान्‌ भी है और दीव भी। महाव्‌ इसलिये है कि उसकी जिज्ञासा मे लगन है, निष्ठा है, दीन इसलिए है कि तीब्ता के कारण ही वह कई जगह सच्चा शोधक् न रहकर केवल हेतुवादी रह जाता है श्रीर उसका हेतुवाद दयनौय जान पडने लगता है। 'शेखर' घनीभूत वेदता की केवल एक रात में देखे गये (विजत) को शब्दबद्ध करने का प्रयत्न करता है, दुख को भोगता है




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