बाला बंजारा | Bala Banjara

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Bala Banjara by गोविन्दवल्लभ पन्त - Govindvallabh Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बाला वनजारा / १७ पहरे वाले सिपाही ने उसे दाय पकड़कर उठा दिया--“जा भाम यहां से, असगुन मत फैला ! क्या तेरे वाप को हमने मारा है ?” अव जव उसने अब्बा के मर जाने की बात साफ लपजोमे सुनलीतो योला--“अम्मा से जाकर क्या कटं अव मैं ?” सिपाही को अपने सामने की অলা टालने की सूझी। वहां लोगो मे बेमतलव की भीड बढानी शुरू कर दी थी। उसने कहा--“तू जाता क्यों नही, स्रीघा वही ?” “कहा ?” “रे अब्वा जहां काम करते थे ।” वोट क्लब में ?” “बखत से घर क्यो नही लोट्ते थे ?” कल रात लाट साहब की नाच-पार्टो थी ।” तो जा, लाट साहव के सामने रो !” अल्लादिया वहाँ से सीधा बोट क्लब जा पहुचा 1 वह टि प्यव रोने लगा। भीतर से एक बाबू ते निकलकर उसे डाट वकरई--ज्दे दो बाप को हमने मारा है ?” रोते-रोते वह दोला---'तुमने न सही, लाड रुएड ते हमे লাহা उन्हे ? उन्‍होंने तो कभी तिरगे झंडे को हाथ में लिया अल का “अबे, क्या बकता है तू यहां ? अमी पद टूबत এিররিলা জিলা “लाट ताह्व को बुला दो; कहां हैं वे “अरे मुरख, लाट साह को तू कया बट >:्८्ी সহ र पास आ जावेंगे। इनकलाबव जिदावाद नगण दप है उसी को तोड़ने के लिए वे दिमाग्री, टेसइन अर #7 छागफार জি कर रहे हैं। अगर जलूस में कोई भी रद नर्‌ मदद अरम डंडे खा जायेगा। इसी समय वोट क्लवके दण्द तव अवहन “अजी वङ्‌ बादर, यवरनमे दाम ই 25 ग द জাতি ~ है। बड़ेवाद्रु फोलदौट्‌ग्एू। ॥ ४ च क्द्रा तेरे




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