गीता तत्त्व बोध खंड - 1 | Gita Tattva-bodh Khand-1

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Gita Tattva-bodh Khand-1 by बालकोवा भावे - Balkova Bhave

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५१९-२० .द्रौपदेय यानी द्रौपदी के पाँच पुत्र | युधिष्ठिर के प्रतिविध्य, भीम के सुतसोम, अर्जुनकं भ्रुतकीति नकुल के शतानीक ओर सहदेव के श्रुतकर्मा- पाडवों के इन पांच पुत्रो ने अपने-अपने शख वजाये । महाबाहु. सौभद्रः यानी जिसकी भृजाषं वहतं पराक्रमी ह, वह्‌ सुभद्रा का पत्र अभिमन्यु । उसने भी अपना गख वजाया । यह १६ साल तक जीवित रहा । इसका तथा द्रौपदी कं पांच पूत्रो का जिक्र छठे श्लोक मे भी है । अत में कहते दै कि सरवन्न. पृथक्‌ पुथक्‌ शंखान्‌ दध्मुः-इन सव महानुभावो ने अपने-अपने अलग-अलग शख बजाये । सजय ने कौरव-पक्ष के सेनानायको के गख बजाने का वर्णन सिर्फ भीष्माचार्य के नाम का जिक्र करके समाप्त किया है। कौरवो के अन्य सेनापतियो ने जख वजाये, मगर उनके नाम नही बताये और न उनके श्खके ही नाम वताये । पाडवो के सेनापत्तियो का वर्णन नाम ले-लेकर किया है और श्रीकृष्ण, अर्जुन, धर्मराज, भीम, नकुल ओौर सहदेव इन छह कं शखो के नाम भी वताये है। साथ दही काव्य, दिखडी, धृष्टद्युम्न, विराट्‌, सात्यकि, द्रुपद, द्रौपदी के पांच पृत्र, अभिमन्यु इस तरह १२ सेनापतियो के नाम चल्यि ই इस प्रकार १२ योद्धा, ५पाडव भौर भगवान्‌ श्रीकृष्ण मिलकर १८ हो जाते है । इसमे मूल वात यही है कि पाडवो का पक्ष सत्पक्ष होने से हर किसीकी सहानुभूति पाडवो के पक्ष की तरफ ही रहती थी । : १९ : स घोषो धार्तराष्टूाणा हृदयानि व्यदारयत्‌ । नभश्च पृथिवी चेव तुमुलो व्यनुनादयन्‌ । नभ च पृथिवी च एव आकादा ओर पृथ्वी दोनो को ही, व्यनुनादयन्‌ =व्याप्त करती हुई, स तुमुल धोष.= ( श्लो कौ ) उस भयानक आवाज ने, धारतराष्टा- णामू=धृतरष्टर के पुत्रो ( कौरवो ) के, हृदयानि गीता-तस्व-बोध हृदयो को, মন যদ. पैदा किया । इस इलोक मे दो वाते ह ( १) नभः च पृथिवीं च एव व्यनुनादयन्‌ स. तुमु घोषः-आकाड ओौर पृथिवी को व्याप्त करती हुदै शखो की भयानक आवाज ने पाडवो की तरफ से कुल मिलाकर १८ महारथियो ने जो गख बजाये, उनकी आवाज आकाश और पृथ्वी दोनो मे व्याप्त हो गयी, इतनी घोर आवाज थी । दुर्योधन के पक्ष के गखो की आवाज भयानक थी, इतना ही वर्णन है । सगर सारे आकाल ओौर पृथ्वी मे वह आवाज व्याप्त हो गयी, ऐसा वर्णन नही है। विनोबाजी लिखते है कि कौरवों की सेना अपेक्षाकृत बडी होने पर भी उसके भीतर नेतिक वल नहीं था । पाडवो की सेना छोटी होने पर भी उसमे ললিন্ধ बल था । (२ ) धारतराप्ट्राणा हृदयानि व्यदारयत्‌- धृतराष्ट्र के पुत्रो (कौरवो) के हृदयो को विदी् किया यानी उनके मन मे उर-सा पदा किया । कौरवो की सेना पाडवों की सेना से बडी थी, इसलिए दुर्योधन को एक प्रकार का भरोसा था कि उनकी विजय होगी | लेकिन पाडवो के पक्ष की तरफ से जब अनेक सेनापतियो ने अपने गख वजाये, तव वह आवाज इतनी भयकर हुई कि उससे कौरवो के मन में डर-सा पैदा हो गया। उन्हे लगता था कि उनकी सेना सख्या में वडी होने से उनकी जीत निश्चित होगी | लेकिन वह अदाजा गलत साबित हो सकता है, ऐसी शका कौरवो के मन मे पाडवो के पक्ष के शखो के वजने पर होने लगी । : २०: अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्‌तर'ष्टान्‌ कपिन्वज । प्रवृत्ते क्ञस्त्रसपाते धनुर्यस्य पाडव । हृषीकेश तदा वाक्यमिदमाह - महीपते ॥




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